कोयला परिवहन का ठेका एआर कोल को और काम में लगे हैं भाटिया कोल लिंक के ट्रेलर
कोयला परिवहन का ठेका एआर कोल को और काम में लगे हैं भाटिया कोल लिंक के ट्रेलर
एसईसीएल में कोयले का काला खेल : ट्रांसपोर्टेशन टेंडर देने के पहले प्रबंधन ने यह भी नहीं जांचा कि ठेकेदार के पास ट्रेलर हैं भी या नहीं
डिजिटल डेस्क शहडोल/अनूपपुर । ट्रेलर के नंबर की अदला-बदली कर कोयले की हेराफेरी किए जाने के मामले ने एसईसील प्रबंधन और उसकी कार्यशैली को संदिग्ध बना दिया है। आश्चर्य यह कि धनपुरी ओसीएम से बुढ़ार रेल रैक साइडिंग तक कोयले के परिवहन का ठेका देने के पहले प्रबंधन ने यह जांच करना भी जरूरी नहीं समझा कि जिसे वह ठेका दे रही है, उसके पास संबंधित काम को करने से जुड़े संसाधन हैं भी या नहीं। वर्ष 2021-22 के लिए हुए इस परिवहन ठेके में प्रबंधन की यही लापरवाही भारी पड़ी है। सूत्रों के अनुसार, नया परिवहन ठेका बिलासपुर की एआर कोल ट्रांसपोर्ट कंपनी को दिया गया है। इस कंपनी ने कोयले के परिवहन के जिन 8 ट्रेलर का एसईसीएल में पंजीयन कराया उनमें से एक भी उसका नहीं है। सभी ट्रेलर बिलासपुर के ही एक दूसरे ट्रांसपोर्टर भाटिया कोल लिंक के हैं। एसईसीएल प्रबंधन यह स्पष्ट नहीं कर रहा है कि उसे इस बात की जानकारी थी भी या नहीं।
पुलिस को भाटिया के पकड़े जाने का इंतजार
एक बड़े कोल स्कैम को उजागर करने का अनूपपुर पुलिस को जो सुनहरा अवसर मिला था, वह अब उसके हाथ से छूटता नजर आ रहा है। कारण, पुलिस की जांच केवल 33 टन कोयले की हेराफेरी में लिप्त मिले वाहन क्र. सीजी 10 - एक 9594 के मालिक पर केन्द्रित हो कर रह गई हैे। इस वाहन (ट्रेलर) का मालिक तेजिंदर सिंह भाटिया है, जो कि भाटिया कोल लिंक का भी मालिक है। भाटिया अभी फरार है। भाटिया के साथ हेराफेरी के इस बड़े मामले के अन्य आरोपी स्थानीय स्तर पर ट्रंासपोर्टर की ओर से काम देखने वाला मैनेजर गज्जू सिंह तथा ट्रेलर को रैक पाइंट के बजाय सुरक्षित छत्तीसगढ़ तक जाने का रास्ता बनाने वाले पिकअप वाहन का मालिक अजय सिंह और बूम बैरियर पर वाहनों की जांच के लिए तैनात एसईसीएल कर्मी अजीत तिवारी भी फरार है।
जो पकड़े गए उनसे भी राज नहीं उगलवा सकी पुलिस
कोयले की हेराफेरी में शामिल वाहन (ट्रेलर) चालक राजकुमार यादव, गाडिय़ों का काम देखने वाला ट्रांसपोर्टर का स्थानीय कर्मचारी संजय मिश्रा, इसका सहयोगी यश चंद्रा और कांटाघर पर नियुक्त एसईसीएल कर्मी बृजेंद्र कांत द्विवेदी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। लेकिन इनसे भी पुलिस केवल फरार आरोपियों की संभावित लोकेशन व रिलेशंस से ज्यादा कुछ नहीं जान पाई। यहां तक कि यह बात भी बाहर नहीं आई कि बिलासपुर में कोयला किसके पास ले जाया जा रहा था। सूत्रों ने दावा किया कि पुलिस इस मामले को केवल वाहन की नंबर प्लेट फर्जी पाए जाने की जांच तक ही सीमित न रखकर यदि अपनी जांच का दायरा और आगे बढ़ाती है तो एक बड़ा कोल स्कैम वह उजागर कर सकती है।
एसईसीएल प्रबंधन खामोश
पुलिस की मजबूरियां हो सकती हैं लेकिन एसईसीएल प्रबंधन की खामोशी, हैरत में डाले है। ओसीएम के प्रबंधक सहित वे सभी अधिकारी-कर्मचारी खुद के वाहन न होते हुए भी एआर कोल को ठेका लेने में मदद पहुंचाई कहीं न कहीं हेराफेरी के इस मामले से जुड़े हुए हैं। यह जानते हुए भी कि जिन ट्रेलर मेें कोयला जा रहा है वे कोल के नहीं, अफसरों का खामोश रहना मामले को संदिग्ध बनाता है। जांच के नतीजे तो सबके सामने हैं लेकिन प्रबंधन और इसके विजिलेंस की जांच के नतीजे भी इन 26 दिनों में सामने नहीं आए। सीजीएम शंकर नागाचारी इस मामले में कुछ बोलना तो दूर मीडिया के सामने आने से भी बच रहे हैं।