Nanded News: लड़ाई खास बनाम आम की - कांटों भरी हैं इस विधानसभा क्षेत्र की राहें
- चव्हाण भाजपा को स्थापित कर पाते हैं, या कांग्रेस साबित करेगी कि अब तक की सभी जीत अशोकराव की नहीं, उनकी थीं!
- - कांटों भरी हैं इस विधानसभा क्षेत्र की राहें
Nanded News : भोकर, मुदखेड़ और अर्धापुर तहसील को मिलाकर बनने वाली भोकर विधानसभा बरसों से राज्य की दशा और दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सीटों में से एक है। चुनावों में यहां क्या घटित हो रहा है, या होगा, उस पर पूरे देश की निगाह रहती है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से यहां कांग्रेस के पूर्व नेता अशोक चव्हाण परिवार का ही निर्विवाद वर्चस्व रहा है। 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद नांदेड़ लोकसभा में कांग्रेस से अशोक चव्हाण जीते ही नहीं थे, भोकर से अपनी पत्नी अमिता चव्हाण को विधानसभा में करीब 50,000 मतों से विजयी भी बनाया था। वहीं, 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद विधानसभा में उतरकर अशोक चव्हाण एक लाख, 40 हजार, 559 मत लेकर जीते, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा के श्रीनिवास गोरठेकर 43,114 मत ही ले पाए। लेकिन, अब अशोक चव्हाण के भाजपा में जाने के बाद समीकरण उलझे-उलझे से हैं। असल में लड़ाई जीत-हार की नहीं, खास बनाम आम की ज्यादा है। चव्हाण को अब बेटी श्रीजया को मैदान में उतारने के बाद अपनी जीत का अंतर बरकरार रखना है, और भाजपा को यहां पहली बार विजय दिलवाकर पार्टी में वजूद मजबूत करना है। यहां कांग्रेस से एक सामान्य परिवार के तिरुपति कोंडेकर उन्हें चुनौती दे रहे हैं। उनके पास धन बल नहीं है, लेकिन वह युवा वर्ग को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वह मतदाताओं से जोर देकर कह रहे हैं कि कांग्रेस को वोट देकर साबित करना है कि अब तक की सभी जीत कांग्रेस की ही थीं, अशोक चव्हाण की नहीं।
रिकार्डतोड़ 140 ने भरा नामांकन, 115 को चव्हाण ने मना लिया : श्रीजया के विरोध में इस बार नामांकन भरने वालों ने सभी रिकार्ड तोड़ दिए। यहां 140 ने फार्म भरा, जबकि पूरे नांदेड़ जिले की 9 विधानसभा सीटों पर 458 ने पर्चा भरा था। नाम वापसी के दिन अशोक चव्हाण सक्रिय हुए, खूंटा गाड़ा और साम-दाम-दंड-भेद से 115 को लौटा दिया। अब भी 25 उम्मीदवार यहां ताल ठोंक रहे हैं। वहीं, जिले में कुल 296 ने नाम वापस लिए और कुल 165 मैदान में हैं।
आपसी तालमेल में कमी का क्या करेंगे : भोकर में सामान्य रूप से श्रीजया को पहला विरोध है कि किसी और पर भी विश्वास किया या ओबीसी को भी मौका दिया जाना चाहिए था। यही शिकायत कांग्रेस के तिरुपति कोंडेकर से भी है। दूसरा कि भाजपा ही नहीं शिवसेना शिंदे और राकांपा अजीत पवार के स्थानीय कार्यकर्ता खुलेआम आरोप लगाते हैं कि चुनाव में उनकी कोई पूछ ही नहीं। कार्यक्रम, बैठकें तय हो जाने के बाद बस उन्हें पहुंच जाने का संदेश मिलता है। वहीं, मविआ में कांग्रेस और राकांपा में तो अच्छा तालमेल है और वे पिछले चुनावों के आधार पर अपने वोटर्स तक पहुंच बना रहे हैं, लेकिन उबाठा के शिवसैनिक उनके हमसाया नहीं बन पा रहे। भोकर के ही एक उबाठा सेना पदाधिकारी ने कहा, लोगों के बीच जाने में हमें झिझक होती है। लोग बेहद आश्चर्य से देखते हैं। इसके अलावा हमें नीतियों को अमल में लाने के लिए विश्वास में लिया नहीं जा रहा।जो किया कांग्रेसी रहते हुए! : कांग्रेस के कोंडेकर इसी बात को भुनाने पर जोर देते हैं कि माना चव्हाण ने सब कुछ किया, लेकिन जो किया कांग्रेसी रहते हुए। वह हर सभा में कहते हैं कि चव्हाण के पीछे कांग्रेस की ताकत नहीं होती, या उनकी योजनाओं को पूर्ण करने के लिए निधि में कमी रहती, तो कुछ होता ही नहीं। वह कहते हैं कि कांग्रेस ने हमेशा इस क्षेत्र के विकास को सर्वोपरि माना, आगे भी मानेंगे।
श्रीजया जीतीं तो भी इतिहास बनेगा, हारीं तो भी : श्रीजया जीतती हैं तो उनके नाम पर दो उपलब्धियां दर्ज हो जाएंगी। पहली कि वे जिले की 5वीं महिला विधायक होंगी, जो कि 2014 के बाद संभव होगा। उनसे पहले अंजनाबाई पाटील, सूर्यकांता पाटील, अनुसया खेड़कर, अमिता चव्हाण विधायक के रूप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इसी के साथ वह जिले में मां-बेटी की जीत का इतिहास भी दोहराएंगी। गौरतलब है कि उनके पहले अंजनाबाई पाटील (1957) की बेटी सूर्यकांता पाटील (1980) भी चुनाव जीतकर मील का पत्थर स्थापित कर चुकी हैं। और हां, यदि श्रीजया हार गईं तो कांग्रेस अपनी सीट पर किसी और पार्टी को नहीं आने देने का भी इतिहास रचेगी।