साहित्यिकी: साहित्य में है समाज की समस्याओं का समाधान
- अधिकतर ग्रंथ जंगलों में रहकर ऋषि मुनियों द्वारा लिखे गए हैं : डॉ. चौधरी
- संस्कृत साहित्य से भारतीय भाषाओं के साहित्य का सृजन
डिजिटल डेस्क, नागपुर. संस्कृत साहित्य से ही मराठी साहित्य हिन्दी साहित्य या फिर अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का सृजन हुआ है। भारतीय साहित्य अरण्य साहित्य के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि अधिकतर ग्रंथ जंगलों में रहकर ऋषि मुनियों द्वारा लिखे गए हैं। गीता का उपदेश ही लें, तो यह रणभूमि में अर्जुन के प्रश्न और श्रीकृष्ण के उत्तर पर आधारित ग्रंथ है। साहित्य में प्रश्नों के उत्तर हैं समाज की समस्याओं का समाधान है। उक्त विचार विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के उपक्रम साहित्यिकी के अंतर्गत ‘किताबें बोलतीं हैं’ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. उदय चौधरी ने व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन संयोजक विनोद नायक ने किया। सर्वप्रथम दिवंगत साहित्यकार प्रा. मधुप पांडे को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
साहित्यिकी की ओर से शादाब अंजुम की बनाई मधुप पांडेय की स्क्रैच पेंटिंग का अनावरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। साहित्यकार डॉ. भोला सरवर ने साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कहानी संग्रह का अंश, अभिनव सिंह ने रामधारी सिंह दिनकर की रचना, तन्हा नागपुरी ने ‘आंसू भरी हैं यह जीवन की राहें', अब्दुल अमानी कुरैशी ने ‘मेरा दिल तोड़ कर जाने वाला बेवफा है, फिर भी मुड़-मुड़ कर मुझको जालिम वो देखता है', माधुरी राऊलकर ने विनोद कुमार उईके की रचना, अशोक शर्मा महासमुंद ने ईश्वर शर्मा का व्यंग्य फायर ब्रिगेड प्रस्तुत कर मंच पर वाहवाही बटोरी।
‘किताबें बोलतीं हैं’ कार्यक्रम का आयोजन
वफा था, जो बेवफा हो गया
अंजुम ओरेज ने ‘देखते-देखते क्या से क्या हो गया, वफा था जो, बेवफा हो गया'। अमिता शाह अमी ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी, शादाब अंजुम ने“तीरों तलवार ये औजार कहां जाएंगे, गर ना हो जंग तो हथियार कहां जाएंगे', आरिफ काजी ने ‘कवियों में सबसे अव्वल आला चला गया, हिंदी को चाहने वाला प्यारा चला गया, व विनोद नायक ने मैथिलीशरण गुप्त की रचना ‘विचार लो कि मृत्यु हो, न मृत्यु से डरो कभी, मरो परंतु यूं मरो की याद जो करे सभी' रचना प्रस्तुत कर उपस्थित जनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। राकेश वैद्य व समीर पठान का सहयोग मिला। आभार सहसंयोजक शादाब अंजुम ने माना।