बॉम्बे हाईकोर्ट: जीवित वसीयत की सुरक्षा को लेकर केंद्र - राज्य सरकार और बीएमसी से जवाब तलब

  • जीवित वसीयत की सुरक्षा के लिए संरक्षक नियुक्त करने की मांग
  • मांग को लेकर जनहित याचिका दायर
  • केंद्र - राज्य सरकार और बीएमसी से अदालत ने मांगा जवाब

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-12 14:30 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने जीवित वसीयत की सुरक्षा के लिए एक संरक्षक नियुक्त करने की मांग को लेकर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और बीएमसी से जवाब मांगा है। याचिका में दावा किया गया है कि जीवित वसीयत कानूनी दस्तावेज है, जिसमें व्यक्ति जीवित रखने के लिए चिकित्सा उपचारों का उपयोग नहीं करना चाहता है। इससे अन्य चिकित्सा निर्णयों दर्द प्रबंधन और अंग दान के लिए सहायक होगा।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष शुक्रवार को गोरेगांव के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.निखिल दातार द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई हुई। जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट (एससी) के निष्क्रिय इच्छामृत्यु के दिशा निर्देशों को सरल बनाने की मांग की गई है। साथ ही याचिका में अदालत से राज्य सरकार और बीएमसी से जीवित वसीयत के लिए संरक्षण नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है।

याचिकाकर्ता ने उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी निकाला है, जिससे खुलासा हुआ है कि राज्य या बीएमसी ने जीवित वसीयत के संरक्षण के लिए कोई अधिकारी नियुक्त नहीं किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर को प्रभाव में लाना है, जिसमें इच्छा मृत्यु का अधिकार दिया गया है। खंडपीठ ने कहा कि कुछ कार्यालय स्थापित करने या उसी के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करने की आवश्यकता है।

याचिकाकर्ता दातार ने दलील दी कि उन्होंने सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को पीआईएल में प्रतिवादी बनाया है, जिनके पास डिजिटलाइज-लॉकर्स हैं, जहां इस तरह की वसीयत को संग्रहीत किया जा सकता है। जीवित वसीयत लिखने वाले डिजिटल रिकॉर्ड में उसे बचाने के लिए चुने जा सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने पिछले साल 24 फरवरी को अपने वसीयत में स्वयं के जीवन जीने की सूचना दी और जीवित वसीयत के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए जनहित याचिका दायर किया।

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