बदली भूमिका: राजनीतिक जमीन की तलाश में भाड़े पर पार्टी, लोकसभा चुनाव में मैदान से बाहर है मनसे
- लोकसभा चुनाव में मैदान से बाहर मनसे
- अब विधानसभा चुनाव में खुद को साबित करने की होगी चुनौती
- 18 वर्ष में कई बार पटरी से उतरा मनसे का इंजन
डिजिटल डेस्क, नागपुर, संजय देशमुख| आम तौर पर जमीन अथवा स्थायी संपत्ति को लीज अथवा किराए पर देने का चलन है, लेकिन क्या आपने किसी राजनीतिक दल को चुनाव में समर्थन के नाम पर किराए पर देने की बात सुनी है? महाराष्ट्र में हर बार की तरह इस बार भी राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बिना शर्त समर्थन देने के नाम पर करीब- करीब यही कर रही है। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्थन देने की भूमिका को राजनीतिक गलियारों में पार्टी को एक तय अवधि के लिए ‘भाड़े’ पर देने का आरोप लग रहा है। यह पहली बार नहीं हुआ है, जब राज ठाकरे ने अपनी भूमिका बदली है।
18 वर्ष में कई बार पटरी से उतरा मनसे का ‘इंजन’
पार्टी बनाने के बाद पिछले 18 वर्ष में राज ठाकरे का ‘इंजन’ कई बार पटरी से उतर चुका है। राज ठाकरे अपनी पार्टी के चालक-मालिक स्वयं हैं। इसलिए पार्टी में लोकतांत्रिक तरीके से रायशुमारी करने पर विश्वास नहीं रखते। समर्थन प्राप्त करने वाली भाजपा ने इससे पहले राज ठाकरे पर ‘सुपारीबाज’ नेता और नॉन प्लेइंग कैप्टन होने का आरोप लगाया था। इंजन के बार-बार बे-पटरी होने से अब राज ठाकरे के समर्थकों में भी विरोधियों के आरोपों में दम होने का नजर आ रहा है, जिसकी शुरुआत मनसे पदाधिकारियों के इस्तीफे देने से हुई है। हालांकि राज ठाकरे ने कार्यकर्ताओं को विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने को कहा है।
मतों में तब्दील नहीं होती है भीड़
2009 के विधानसभा चुनाव में मनसे के 13 विधायक चुने गए। पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए ‘इंजन ’ चुनाव चिह्न मिला। 2014 में मनसे ने 219 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन एक विधायक ही जीत पाया। 2019 के चुनाव में भी मनसे ने 101 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन राजू पाटील एकमात्र उम्मीदवार थे, जो कल्याण से जीते थे। चुनाव में लाखों की तादाद में उमड़ने वाली भीड़ को वोट बैंक समझने वाले राज ठाकरे की लोकप्रियता का गुब्बारा फूट चुका था। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने राज्य के अनेक क्षेत्रों में भाजपा के खिलाफ ‘लाव रे तो वीडियो' अभियान चलाकर फिर एक बार लाखों की भीड़ जुटाई थी, लेकिन कांग्रेस-राकांपा को कोई लाभ नहीं पहुंचा।
संगठनात्मक ढांचे की उपेक्षा
राजनीतिक भूमिका में निरंतरता की कमी और संगठनात्मक ढांचे की उपेक्षा करने का आरोप राज ठाकरे पर लगता रहता है। उन्होंने अपनी पार्टी को मुंबई, ठाणे, पुणे, नाशिक और कोंकण तक ही सीमित रखा है। विदर्भ और मराठवाड़ा में पार्टी का विस्तार और संगठन बढ़ाने में अधिक सक्रियता नहीं दिखाई। जो 13 विधायक चुने गए थे, आधा दर्जन विधायक राज ठाकरे को छोड़कर जा चुके हैं। सिंतबर 22 में राज ठाकरे ने विदर्भ का दौरा किया था। सितंबर 23 में पार्टी के नेताओं ने दौरा कर विदर्भ में चंद्रपुर, अमरावती, यवतमाल और अन्य लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर कार्यकर्ताओं को तैयारी करने का आदेश दिया था। नए निर्णय के बाद समर्थकों ने चुप्पी साध ली है।
महज डेढ़ फीसदी वोटों की हिस्सेदारी
मनसे 2009 का लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘भाजपा के खिलाफ ‘लाव रे तो वीडियो' का कैम्पन चलाया और अब 2024 को मोदी को बिना शर्त समर्थन दे दिया। राज्य में मनसे के अब तक प्राप्त वोटों के अनुसार मनसे की हिस्सेदारी महज डेढ़ फीसदी है।
पहले ही चुनाव में कराया था ताकत का एहसास
शिवसेना से अलग होने के बाद 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने मनसे के नाम से अपनी पार्टी बनाई। राज ठाकरे की आक्रामक शैली, भाषण के दौरान भीड़ को बांधे रखने की कला के लोग कायल हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार मनसे चुनाव मैदान में उतरी। राज्य में 11 सीटों पर चुनाव लड़ा, सफलता नहीं मिली, लेकिन ताकत का एहसास कराया। अकेले मुंबई में 5 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में मनसे ने दस सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। मनसे का कुल वोट शेयर 2009 के मुकाबले में 4.1 प्रतिशत से घटकर मात्र डेढ़ प्रतिशत रह गया।
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राज का राजनीतिक सफर |
2009 अपने दम पर चुनाव लड़ा |
2014 भाजपा को समर्थन |
2019 बीजेपी के खिलाफ ‘लाव रे तो वीडियो' |
2024 नरेंद्र मोदी को बिना शर्त समर्थन |