नागपुर: विकसित देशों की तर्ज पर कैंसर को हराने निरंतर जागरूकता कार्यक्रम है बेहद जरूरी
- कैंसर को हराने किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स की विशेषज्ञ टीम ने दी जानकारी
- दैनिक भास्कर में हुआ ‘कैंसर जागरूकता व निवारण पर चर्चासत्र’
- नियमित स्क्रीनिंग प्रोग्राम की आवश्यकता
डिजिटल डेस्क, नागपुर. कैंसर के प्रति जागरूकता का अभाव है। निजी व सरकारी स्तर पर किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। इसलिए कैंसर को हराने के लिए विकसित देशों की तर्ज पर निरंतर जागरूकता कार्यक्रम जरूरी हैं। ऐसा दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स के विशेषज्ञों की टीम ने एक स्वर में कहा। विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर दैनिक भास्कर द्वारा शुक्रवार को कैंसर जागरूकता व निवारण पर चर्चासत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने मार्गदर्शन किया। इस साल कैंसर-डे की थीम ‘टुगेदर वी चैलेंज दोज इन पॉवर’ है। चर्चासत्र में किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स के सीओओ डॉ. तुषार गावड, मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ प्रसाद, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. कृणाल खोब्रागडे, ब्रेस्ट ऑन्कोसर्जन डॉ. अरुंधति मराठे लोटे, हेमेटोलॉजिस्ट एंड हेमेटोऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. रिया बालीकर, पेन एंड पैलिएटिव केयर स्पेशलिस्ट डॉ. मोना राय, कैंसर योद्धा सुनीता दुबे, ब्रांडिंग एवं कम्यूनिकेशन विभाग के डीजीएम एजाज शमी, बिजनेस डेवलपमेंट विभाग के डीजीएम रोशन फुलबांधे आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में कैंसर जागरूकता व निवारण, देखभाल, एहतियात, स्वस्थ आहार आदि पर जानकारी दी गई। कार्यक्रम के दौरान प्रश्नोत्तर सत्र में विविध प्रश्नों का उत्तर समाधान किया गया। कैंसर के प्रति जागरूकता को सामाजिक सरोकार का विषय बताया। सभी अतिथियों को पौधा व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। प्रास्ताविक दैनिक भास्कर के संपादक मणिकांत सोनी ने रखा। संचालन मार्केटिंग मैनेजर कोमल पवार ने व आभार प्रदर्शन सिटी एडिटर सुनील हजारी ने किया।
कैंसर के प्रति जागरूकता का अभाव
किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स परिपूर्ण सुविधा युक्त हॉस्पिटल है। यहां कैंसर के लिए विशेष ऑन्कोलॉजी विभाग है। जल्द ही यहां रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग शुरू किया जाएगा। ऐसा किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स के सीओओ डॉ. तुषार गावड ने कहा। उन्होंने बताया कि वर्तमान दौर में भी कैंसर के प्रति जागरूकता का अभाव है। नियमित जांच नहीं होने से प्राथमिक चरण में कैंसर होने का पता नहीं चल पाता। यदि प्राथमिक चरण में ही कैंसर का पता चल गया, तो तुरंत उपचार किया जा सकता है। इससे आसानी से कैंसर को मात दी जा सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि कम से कम साल में एक बार स्वास्थ्य जांच करवाना जरूरी है। इससे कैंसर व अन्य बीमारियों का तुरंत पता चलेगा और समय पर उपचार किया जा सकेगा। ऐसा भी डॉ. गावड ने बताया।
नियमित स्क्रीनिंग प्रोग्राम की आवश्यकता
किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ प्रसाद ने कैंसर और जागरूकता को लेकर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि वर्तमान जीवनशैली और खानपान के कारण कैंसर को बढ़ावा मिल रहा है। जिन लोगों के परिवार में पहले से कैंसर की हिस्ट्री रही हो, ऐसे लोगों ने नियमित जांच करनी चाहिए, ताकि समय रहते कैंसर का पता लग सके। इसके अलावा नियमित स्क्रीनिंग प्रोग्राम भी बहुत जरूरी है। हमारे देश में कैंसर जागरूकता कार्यक्रम प्रभावशाली नहीं है। इसलिए ऐसे कार्यक्रमों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। अन्य विकसित देश जागरूकता कार्यक्रम पर अधिक जोर देते हंै, जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं होता। दूसरा इसमें क्षेत्र के अनुसार जागरूकता होनी चाहिए। जैसे नागपुर में ओरल और ब्रेस्ट कैंसर का प्रमाण अधिक है। इसलिए यहां इन दोनों के प्रति जागरूकता की जरूरत है। 40 फीसदी मरीजों में गुटखा, खर्रा, तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी व तंबाकूजन्य सामग्रियों के सेवन से कैंसर होता है। इन सामग्रियों के निर्माण, बिक्री, सेवन आदि के प्रति जागरूकता फैलाने पर आदतों में सुधार की गुंजाइश है। इससे कैंसर का प्रमाण 30 फीसदी तक कम हो सकता है। बुजुर्गों व युवाओं को यह बात समझानी होगी कि तंबाकू के कारण कैंसर होता है। डॉ. प्रसाद ने बताया कि वर्तमान स्पर्धात्मक व भागदौड़ भरी जीवनशैली के कारण दिनचर्या बिगड़ चुकी है। इसके कारण शारीरिक प्रक्रिया असंतुलित हो चुकी है। ऐसे में बीमारियों को घर करने में आसानी होती है। इसके अलावा खानपान में फास्ट फूड व जंक फूड का अधिक उपयोग करना नुकसानदायी साबित हो रहा है। नियमित शारीरिक व्यायाम न करना और पौष्टिक आहार का सेवन न करने से बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। लंबे समय तक शरीर में छोटी-छोटी चीजें एकत्रित होकर कुछ साल बाद अचानक कैंसर होने का पता चलता है। इसके अलावा प्लास्टिक रैपर पैकिंग में रखी सामग्री का सेवन करना, प्लास्टिक के कप में चाय पीना या प्लास्टिक से बनी सामग्रियों का खानपान के लिए उपयोग करना भी घातक है। नियमित कसरत नहीं होने से मोटापा बढ़ता है। मोटापा बढ़ने पर 10 से 15 प्रकार के कैंसर होने का खतरा बना रहता है। मोटापे के कारण कैंसर होता है, यह बात सामान्यजनों तक पहुंचाना जरूरी है। उनके बीच जाकर जागरूकता की आवश्यकता है। किसी परिवार में पूर्व में कैंसर के मरीज रहे हों, तो उस परिवार के अन्य सदस्यों ने कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टरों से जांच करवानी चाहिए। डॉक्टरों की सलाहनुसार स्क्रीनिंग करवाना जरूरी है। सीटी स्कैन करने पर प्रारंभिक चरण में ही कैंसर का पता चल सकता है। ऐसे में उपचार कर कैंसर को खत्म करने में आसानी हाेती है। प्राेस्टेड कैंसर में 10 साल में एक बार कोलोनोस्कोपी करवाकर कैंसर के बारे में जानकारी ली जा सकती है। महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा यानि सर्वाइकल कैंसर होता है। इसके लिए एचपीवी वैक्सीनेशन का विकल्प है। इससे 30 से 40 फीसदी कैंसर को रोका जा सकता है। वैसे ही हिपेटाइटिस बी के वैक्सीनेशन भी कैंसर के बचाव में सहायक है। ऐसा भी डॉ. सौरभ प्रसाद ने कहा।
मरीज व परिजनों को मानसिक बल देना जरूरी
किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स की पेन एंड पैलिएटिव केयर स्पेशलिस्ट डॉ. मोना रॉय ने बताया कि जब मरीज अस्पताल में आते हैं, तो उन्हें कैंसर से लड़ने के लिए सकारात्मक मानसिक बल की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि जब अस्पताल में मरीज आते हैं, उस समय मरीज व परिजनों की स्थिति काफी संवेदनशील होती है। ऐसे नाजुक समय में मरीज व उसके परिजनों का काफी ध्यान रखना पड़ता है। उन्हें भावनात्मक रूप से समझाना जरूरी होता है। उनके साथ अपनेपन की भावना से बात-व्यवहार कर उपचार के लिए तैयार करना पड़ता है। कैंसर का नाम सुनकर ही लोग टूट जाते हैं। ऐसे में उनके भीतर सकारात्मक भाव पैदा करना जरूरी होता है। मरीज व परिजनों की कई तरह की समस्याएं होती हैं, उन समस्याओं को समझकर राह निकालनी पड़ती है। मनोरोग विशेषज्ञ व सामाजिक कार्यकर्ता के माध्यम से सकारात्मकता दिखानी पड़ती है। उनके भीतर का डर खत्म कर मानसिकता बदलनी पड़ती है। जब सकारात्मकता पैदा होती है, तो मरीज उपचार के लिए तैयार होते हैं और प्रतिसाद भी मिलता है। डॉ. रॉय ने बताया कि संतुलित व पौष्टिक खानपान, नियमित व्यायाम, जीवनशैली में बदलाव, पैदल चलना, प्रदूषण से बचाव आदि के बारे में जागरूक रहना जरूरी है। आजकल सब्जियों पर दवाओं का छिड़काव होने से भी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। इन सभी बातों के प्रति समाज में जागरूकता की आवश्यकता है। कैंसर के एडवांस स्टेज में भी नियमित उपचार के माध्यम से एक लंबा जीवन मिल सकता है। ऐसा भी डॉ. रॉय ने बताया।
कीमोथेरेपी में समय के साथ
बदलाव आ चुका है
ब्रेस्ट कैसर व सर्वाइकल कैंसर में अक्सर यह सोचा जाता है कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ है, जबकि परिवार में किसी को कैंसर नहीं है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। कैंसर किसी को भी हो सकता है। इसलिए कैंसर न हो इसके लिए जागरूकता कार्यक्रमों की काफी आवश्यकता है। ऐसा कैंसर योद्धा सुनीता दुबे ने कहा। वे खुद कैंसर जैसी बीमारी को हराकर स्वस्थ जीवन बिता रही हंै। उन्होंने बताया कि मरीज कीमोथेरेपी के नाम से ही डर जाते हैं। उनका कहना होता है कि सब कुछ कराएंगे, लेकिन कीमोथेरेपी नहीं कराएंगे, जबकि 10-15 साल पहले कीमोथेरेपी में जो पीड़ा होती थी, वह अब नहीं होती। यदि किसी मरीज का कैंसर का उपचार चल रहा है और उसके बाल झड़ने लगें, तो वह मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। ऐसे मरीजों काे समझाना पड़ता है कि बाल झड़ रहे मतलब दवाएं असर करने लगी हैं। बीमारी खत्म होने की शुरुआत हो चुकी है। तब जाकर मरीजों में सकारात्मक मानसिकता तैयार होती है। उन्होंने प्राथमिक चरण में ही कैंसर का पता लगाने के लिए मैमोग्राफी जरूरी बताया। मैमोग्राफी से पता चलेगा कि महिलाओं को कब कौन सी जांच करानी है। ऐसा भी सुनीता दुबे ने बताया।
ब्लड कैंसर में टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी प्रभावी
किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स में कन्सलटेंट हेमेटोलॉजिस्ट एंड हेमेटोऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. रिया बालीकर ने बताया कि ब्लड कैंसर काफी घातक है। इसलिए ब्लड कैंसर का तुरंत उपचार करवाना जरूरी होता है। इसके लिए टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी काफी प्रभावी उपचार पद्धति है। इन दोनों थेरेपी के कारण ब्लड कैंसर उपचार में सफलता का प्रमाण बढ़ रहा है। उन्होंने ब्लड कैंसर के प्रति जागरूकता पर जोर देते हुए कहा कि इसके लक्षण दिखायी देते ही तुरंत विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाना चाहिए। विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाहनुसार नियमित जांच व उपचार करना जरूरी है। ऐसा भी डॉ. बालीकर ने बताया।
महीने में एक बार स्तनों का स्वयं परीक्षण करना जरूरी
किम्स-किंग्सवे हॉस्पिटल्स की ब्रेस्ट ओन्को सर्जन डॉ. अरुंधति मराठे लोटे ने बताया कि इस समय ब्रेस्ट कैंसर का प्रमाण 23 फीसदी है। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का प्रमुख कारण अज्ञानता व जागरूकता का अभाव है। उन्होंने कैंसर के कुछ मुख्य कारणों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि तंबाकू, शराब व अन्य नशे की सामग्रियों के सेवन से कैंसर की संभावना बनी रहती है। महिलाओं में स्तन कैंसर के प्रमाण को देखते हुए कहा कि महिलाओं ने कम से कम महीने में एक बार स्तनों का स्वयं परीक्षण करना चाहिए। स्तनों के बदलाव को समझना जरूरी है। स्तनों पर सूजन, गांठ, अाकार में परिवर्तन व अन्य तरह के बदलाव जो पहले से असामान्य दिखायी देते हों तो सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसा कुछ एहसास हो तो निसंकोच डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए। जांच के बाद ही पता चलेगा कि ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण हंै या नहीं हैं। यदि खतरे की शुरुआत है, तो तुरंत उपचार शुरू करना चाहिए, ताकि समय रहते कैंसर को खत्म किया जा सके। इसके अलावा माता द्वारा बाल शिशुओं को स्तनपान नहीं कराने से भी ब्रेस्ट कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। पहले ब्रेस्ट कैंसर में सर्जरी कर ब्रेस्ट निकाली जाती थी। अब वह दौर नहीं है। अब ब्रेस्ट बचाकर भी सर्जरी होने लगी है। ब्रेस्ट कैंसर के उपचार में काफी आधुनिकता आ चुकी है। स्क्रीनिंग मैमोग्राम, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई आदि से ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है। उपचार के लिए कीमोथेरेपी, ऑन्कोप्लास्टी, रेडिएशन, टार्गेट थेरेपी जैसे विकल्प उपलब्ध हैं। इसलिए कैंसर के प्रति जागरूकता जरूरी है। कैंसर को हराना संभव है, केवल समय रहते उपचार होना चाहिए। ऐसा भी डॉ. अरुंधति मराठे लोटे ने बताया।