Nagpur News: गडकरी ने कहा - बंटेंगे तो कटेंगे नारा महाराष्ट्र के लिए नहीं
- सबसे अधिक करीब 65 आमसभाओं को संबोधित करने वाले हैं
- प्रतिदिन 6 से 7 सभाओं में कर रहे शिरकत
- कहा- नारे का दूसरा मतलब निकाल कर लोगों को इसके मूल अर्थ से भटकाया जा रहा
Nagpur News मणिकांत सोनी . महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव प्रचार में व्यस्त केंद्रीय परिवहन मंत्री नितीन गडकरी विकास को सत्ता की कुंजी बताते हुए कहते हैं ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा महाराष्ट्र के लिए नहीं है। घुसपैठियों और आतंकवादियों के खिलाफ हम सब एक हैं। अगर हम सब एक रहेंगे तो किसी दुश्मन की मजाल नहीं, जो भारत की तरफ आंख उठाकर भी देख सके।
राज्य विधानसभा चुनाव के प्रचार में सबसे ज़्यादा मांग परिवहन मंत्री गडकरी की है। भाजपा सहित महायुति के उम्मीदवारों को गडकरी में उम्मीद नजर आती है। इस बात का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव के दौरान वे सबसे अधिक करीब 65 आमसभाओं को संबोधित करने वाले हैं। रोज 6 से 7 सभाओं में शिरकत कर रहे हैं। चुनावी सभाओं में व्यस्त नितीन गडकरी ने दैनिक भास्कर से खुलकर चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के चुनिंदा अंश-
- आपको लगता है कि महाराष्ट्र चुनाव में ‘बंटेंगे तो कटेंगे' नारा कुछ असर दिखाएगा?
दरअसल, कुछ लोगों द्वारा इस नारे का दूसरा मतलब निकाल कर लोगों को इसके मूल अर्थ से भटकाया जा रहा है। मुझे नहीं लगता कि इसका महाराष्ट्र में कोई असर दिख सकेगा। हम सबका साथ, सबका विकास की अवधारणा में विश्वास रखते हैं। हम सभी देशवासी एक हैं और रहेंगे। देश की जनता को बांटने का काम कांग्रेस कर रही है। जातिगत जनगणना हम एकजुट देशवासियों के बीच मनभेद पैदा करेगी। भाजपा सब को साथ लेकर देश को दुनिया में सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ा करना चाहती है।
- आपकी ही पार्टी बंटेंगे, कटेंगे कहकर वोट हासिल करना चाहती है?
न हम बंटेंगे और न हम कटेंगे। हम एक रहेंगे और आतंकवादियों व घुसपैठियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करके सेफ रहेंगे।
- क्या कारण है कि इस चुनाव में प्रचार के लिए सबसे ज्यादा डिमांड आपकी हो रही है?
मैंने हमेशा सकारत्मक राजनीति की है। यही मेरी सफलता और लोकप्रियता का कारण है। आजकल राजनीति में महत्वाकांक्षा और अपेक्षाएं काफी बढ़ गई हैं। मेरा मानना है कि अगर आप जनता को साथ लेकर और उसके विकास लिए काम करते हैं तो आपकी सभी आकांक्षाएं और अपेक्षाएं खुद ही पूरी हो जाएंगी। चुनावी सभाओं में भी मैं किसी की कमी या खामी बताने की बजाय उस क्षेत्र और वहां की जनता के विकास की बात करता हूं।
- गठबंधन में सीट बंटवारे और पार्टी में टिकट वितरण से कार्यकर्ताओं में नाराजगी दिख रही है।
निर्णय कोई भी हो, कुछ लोगों में नाराजगी रहेगी ही। फिर भी इस बार 90 प्रतिशत टिकट वितरण सहमति से हुआ है। विरोध तो हर निर्णय का होता ही है, लेकिन अच्छी बात यह है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के समझाने पर बागी उम्मीदवारों ने संगठन से जुड़कर ही काम करने पर सहमति जताई है।
- लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के माहौल और मुद्दों में क्या अंतर देखते हैं आप?
हम तब भी जीते थे और अब भी जीतेंगे। संविधान बदलने का झूठा नैरेटिव गढ़ कर विपक्ष ने मतदाताओं को बहकाने की कोशिश ज़रूर की थी, लेकिन जनता ने उनको हकीकत से रु-ब-रु करा दिया। न तो हम संविधान बदलना चाहते हैं और न ही किसी को बदलने देंगे। मैं आमसभाओं में अक्सर जनता से पूछता हूं कि क्या आप दुकानदार से जाति या धर्म पूछकर अपनी खेती के लिए बीज या खाद खरीदते हैं या विशेषज्ञ डॉक्टर की जाति या धर्म देखकर उससे इलाज करवाते हैं? नहीं न, फिर जाति या धर्म देखकर चुनाव में वोट क्यों डालते हैं?
- इतनी व्यस्तता में अपने लिए समय कब और कैसे निकाल पाते हैं?
पॉजीटिव अप्रोच के साथ अगर कोई व्यक्ति काम करता है तो उसे थकान महसूस नहीं होती। सुबह 7 बजे उठने के बाद रात को 12 कब बज जाता है, इसका पता ही नहीं चलता। लेकिन इतनी व्यस्तता के बावजूद योग, परिवार और भोजन के लिए समय निकाल लेता हूं। मुझे तरह-तरह के भोजन करना पसंद है। रात को जब घर पहुंचता हूं, तो तीनों शेफ मेन्यू कार्ड लेकर आ जाते हैं।
- घर पर भी मेन्यू कार्ड?
बिल्कुल, (मुस्कुराते हुए) व्यस्तता के दौर में लोग कल के कार्यक्रमों की चिंता करते हैं, उनके विपरीत मैं यह सोचता हूँ कि कल क्या और कहां खाया जाए। आज सुबह भी मैंने बर्फ में गलाए गए दाल-चावल की खिचड़ी खाई है। मेरे घर के मेन्यू कार्ड में 67 डिशेस हैं। इनमें फाइव स्टार होटल से लेकर ठेठ गांव में बनने वाले व्यंजन शामिल हैं।
Created On :   12 Nov 2024 11:09 AM GMT