Nagpur News: असमय मार रहा सिकलसेल, सालाना 10 साल तक के 300 से अधिक बच्चों की मृत्यु

असमय मार रहा सिकलसेल, सालाना 10 साल तक के 300 से अधिक बच्चों की मृत्यु
  • मौत के अलग-अलग कारण आ रहे सामने
  • बीमारी को लेकर जागरुकता न होने से मृत्यु दर अधिक
  • शुरुआत में ही सिकलसेल की जांच व उपचार से लाभ

Nagpur News रक्तविकार की बीमारी सिकलसेल को लेकर कहीं भी अधिकृत संख्या दर्ज नहीं होती। जिले में ऑन रिकॉर्ड 3000 मरीज होना बताया गया है, जबकि मेडिकल में सालाना 5000 मरीज उपचार कराने व दवा लेने पहुंचते हैं। मरीजों का प्रमाण 2 से 10 साल आयु के 35 फीसदी, 11 से 20 साल के 25 फीसदी, 21 से 30 साल के 20 फीसदी, 31 से 45 साल के 10 फीसदी, और 46 से 55 साल के 10 फीसदी होने का अनुमान व्यक्त किया गया है। सर्वाधिक संख्या 2 से 10 साल की आयुवर्ग की है। 3000 मरीजों में 2 से 10 साल आयु वर्ग के 1050 मरीज होने का अनुमान व्यक्त किया है। इनमें से 30 फीसदी यानि 315 मरीजों की मृत्यु होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

समय व पैसा बर्बाद: नेशनल एलायंस ऑफ सिकलसेल आर्गनाइजेशन नागपुर के सचिव डॉ. गौतम डोंगरे ने बताया कि सिकलसेल पीड़ितों की मौत के पीछे अनेक कारण होते हैं। सामान्य जांच व उपचार के बाद मरीज को कुछ समय के लिए राहत मिल जाती है, लेकिन बार-बार वही तकलीफ उभरकर परेशान करती है। फिर बड़े-बड़े अस्पतालों में जाते हैं, तांत्रिकों के पास जाते हैं, जड़ी-बूटियों का उपचार करवाते है, लेकिन लाभ नहीं मिलता। कुल मिलाकर समय व पैसे की बर्बादी होती है। यदि प्रशिक्षित डॉक्टर्स होंगे, तो वह शुरुआत में ही सिकलसेल की जांच करवाकर पीड़ितों को राहत दे सकते है।

डॉक्टरों को लक्षणों की जानकारी जरूरी : सिकलसेल पीड़ितों के बारे में धारणा है कि उनका जीवन 25 साल तक ही होता है। ऐसा नहीं है, अब सिकलसेल पीड़ित सामान्य लोगों की तरह पूरा जीवन जी सकता है। इसके लिए जरूरी है कि, डॉक्टरों को इस बीमारी के लक्षणों की जानकारी होनी चाहिए।

हाइड्रॉक्सीयूरिया की जानकारी नहीं : प्रदेश के नंदुरबार में सिकलसेल के 11 हजार मरीज हैं। वहां मृत्यु दर सर्वाधिक है। स्थिति विकराल होने के कारण डॉ. गौतम डोंगरे ने वहां के जिला स्वास्थ्य अधिकारी और जिलाधिकारी से भेट कर उन्हें सिकलसेल के बारे में बताया। उनके सामने यह बात रखी गई कि डॉक्टरों को इस बीमारी के बारे में पूरी तरह जानकारी नहीं है। जिन्हें जानकारी है, उन्हें उपचार पद्धति या हाइड्रॉक्सीयूरिया दवा के बारे मे पता नहीं है। इसके बाद वहां 150 डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया गया। अब वहां हर मरीज पर कड़ी निगरानी रख जांच कर उसे सिकलसेल है या नहीं, इसे प्रमुखता दी गई है। डॉ. डोंगरे ने बताया कि नागपुर जिले में भी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को प्रशिक्षण देना जरूरी है, ताकि सिकलसेल के चलते होनेवाली असमय मृत्यु पर रोक लग सके।

Created On :   16 Oct 2024 7:03 AM GMT

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