बीमारी: बड़ों के साथ बच्चों को भी घेरने लगा है सोरायसिस, अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ी
- मेडिकल में आनेवाले 25 फीसदी में 5 फीसदी कम आयु वर्ग के मरीज
- त्वचा रोग विभाग में हर रोज आते है औसत 400 मरीज
- त्वचा रोगियों में सोरायसिस के मरीज ही अधिक
डिजिटल डेस्क, नागपुर। कुछ साल पहले तक त्वचा से जुड़ी बीमारियां किशोर आयु के बाद ही होती थी। लेकिन अब बच्चों से लेकर किशोरवयीन और सभी आयु वर्ग को त्वचा रोग का शिकार होना पड़ रहा है। इसमें सनबर्न, दाद, खुजली, फंगल इन्फेक्शन, एलर्जी होना तो सामान्य बीमारियां हैं। अब एक असामान्य मानी जानेवाली बीमारी साेरायसिस भी शामिल हो चुकी है। पहले यह बीमारी किशोर आयु के बाद हुआ करती थी, लेकिन अब बच्चों से लेकर किशोर आयु तक यह बीमारी होने लगी है। मेडिकल के त्वचा रोग विभाग में 25 फीसदी सोरायसिस मरीजों में 5 फीसदी बच्चों से लेकर किशोरवयीन तक का समावेश होता है।
पहले होते थे नाममात्र मरीज : शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) त्वचा रोग विभाग की ओपीडी में हर रोज औसत 400 मरीज जांच व उपचार के लिए आते हैं। कुल मरीजों में 25 फीसदी सोरायसिस से पीड़ित होते हैं। यानि हर रोज 100 मरीज सोरायसिस पीड़ित होते हैं। इनमें बच्चों से लेकर किशोरवयीन तक का प्रमाण 5 फीसदी है। इनका उपचार 3 से 6 महीने तक चलता है। मेडिकल सूत्रों के अनुसार कुछ साल पहले तक सोरायसिस नामक बीमारी बच्चाें व किशोरवयीन को नहीं होती थी। केवल नाममात्र मरीज ही मिलते थे। लेकिन अब इस बीमारी के मरीज बढ़ने लगे हैं। सर्दियों में तो सर्वाधिक त्वचा रोगियों में सोरायसिस के मरीज ही होते हैं। वहीं गर्मी में उनका प्रमाण कम होता है।
घातक नहीं, लापरवाही से बढ़ती तकलीफ : सोरायसिस घातक नहीं होता, लेकिन इसका समय रहते डॉक्टर से जांच व नियमित उपचार करवाना जरूरी होता है। ग्रामीण क्षेत्र में इस बीमारी के मरीज अधिक बताए जाते हैं। यहां त्वचा की देखभाल के प्रति लोग गंभीर नहीं होते। बच्चों में सामान्य प्रकार का प्लाक सोरायसिक अाम प्रकार हो चुका है। यह प्रकार घुटनों, कोहनियों, पीठ के निचले हिस्से और सिर पर प्लाक और सिल्वर स्केल के कारण होता है। अगर बच्चों के शरीर के कुछ अंगों पर लाल रंग के पपड़ीदार चकत्ते पड़ रहे हैं, बच्चे बार-बार उनमें खुजली कर रहे हैं या दर्द, जलन की शिकायत कर रहे हैं तो ये सोरायसिस की संभावना होती है। इसे त्वचा की एलर्जी मानकर छोड़ दिया जाए तो यह गंभीर हो सकता है।
इन कारणों से होती है बीमारी : सोरायसिस दो कारणों से होता है। पहला यह एक जेनेटिक बीमारी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। दूसरा यह ऑटोइम्युसन बीमारी है। यानि बॉडी के सेल्सस ही इस बीमारी को बनाते हैं। जो त्वचा पर दिखायी देते है। जब ऑटोइम्युऑन की वजह सोरायसिस होता है तो इसमें त्वचा की सेल्सस 14 दिन में बनकर ऊपर दिखाई देने लगती हैं। जबकि सामान्य स्थिति में त्वचा की सेल्स बनने में करीब 1 महीना लगता है। सोरायसिस होने के दूसरे कारण भी हैं। प्रदूषण, संक्रमण, सूखी त्वचा, हवा के संपर्क में रहने पर, मौसम में बदलाव, धूम्रपान, तनाव, बाहरी खानपान, जीवनशैली में बदलाव, पौष्टिक आहर की कमी आदि से यह बीमारी होने लगी है। 40 फीसदी बच्चों में यह बीमारी जेनेटिक होती है। ओवरवेट, चोट लगना, किसी कीड़े के काटने से यह बीमारी होती है।
ऐसे हो सकते हैं साइड इफेक्ट : प्लाक सोरायसिस के सिवा अन्य छह प्रकार शामिल है। उलटा सोरायसिस, गुटेट सोरायसिस ,पुष्ठीय सोरायसिस, एरिथ्रोडार्मिक सोरायसिस, सेबप्सोरियासिस ,नाखून सोरायसिस आदि शामिल है। यह संक्रामक बीमारी नहीं है। लंबे समय तक सोरायसिस की अनदेखी करनेपर अन्य दूसरी तकलीफ होने की संभावना रहती है। सूत्रों के अनुसार सोरायसिस का लंबे समय तक उपचार न करने पर या लापरवाही बरतने पर साेरियाटिक गठिया हो सकता है। यह जोड़ों में और उसके आसपास दर्द, जकड़न और सूजन का कारण बनता है। त्वचा के रंग में परिवर्तन होता है, नेत्ररोग जैसे ब्लेफेराइटिस और यूवाइटिस, डायबिटिज टाइप टू, हाई ब्लड प्रेशर, मानसिक तनाव जैसी बीमारियां होने की संभावना बनी रहती है।