उत्तर पुस्तिका : हाई कोर्ट ने खुद जांची उत्तरों की गुणवत्ता फिर एमपीएससी को दिए पुनर्मूल्यांकन के आदेश
- कोर्ट ने खुद जांची उत्तरों की गुणवत्ता
- एमपीएससी को दिए पुनर्मूल्यांकन के आदेश
- नागपुर खंडपीठ से महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) को झटका
डिजिटल डेस्क, नागपुर. बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ से महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) को झटका लगा है। हाई कोर्ट ने केवल 2 अंकों से सिविल जज जूनियर डिवीजन व जेएमएफसी की परीक्षा में अनुत्तीर्ण अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका दोबारा जांचने का आदेश एमपीएससी को दिए हैं। याचिकाकर्ता की दलील थी कि उसके 4 प्रश्नों के उत्तर पर कम अंक दिए गए हैं, इसलिए एमपीएससी को उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया जाए। वहीं एमपीएससी की दलील थी कि उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान नहीं होने के कारण ऐसा संभव नहीं है। ऐसे में हाई कोर्ट ने स्वयं अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका देखी और प्रश्नों के उत्तरों की गुणवत्ता जांची। छात्र ने प्रश्नों के उत्तर में सही प्रावधान लिखे हैं, इस निरीक्षण के साथ इसे विशेष प्रकरण बताते हुए एमपीएससी को 3 सप्ताह में पूनर्मूल्यांकन का आदेश दिया है।
एमपीएससी द्वारा वर्ष 2022 को सिविल जज जूनियर डिवीजन व जेएमएफसी की परीक्षा ली गई थी। एलएलएम डिग्रीधारी याचिकाकर्ता ने भी यह परीक्षा दी। मार्च में हुई प्रीलिम्स परीक्षा में वे सफल हुए, जिसके आधार पर उनका मेन्स परीक्षा देने के लिए चयन हुआ। मई 2022 में मेन्स परीक्षा हुई। इसमें पेपर-1 और पेपर-2 नामक विषय थे। नवंबर में नतीजे अाए तो याचिकाकर्ता को 36वें क्रम में रखा गया और उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। साक्षात्कार और मेन्स के अंकों के आधार पर जब अंतिम नतीजे आए तो याचिकाकर्ता का क्रम पिछड़ कर 71 पर आ गया। याचिकाकर्ता ने अपने अंकों पर गौर किया तो पेपर-1 में 52, पेपर-2 में 63 और साक्षात्कार में 27 अंक मिले। कुल 142 अंक मिलने के कारण उनका चयन नहीं हुआ, जबकि आखिरी उम्मीदवार को 144 अंकों पर चयनित कर लिए गया। 2 अंकों से चयन रुकने के कारण याचिकाकर्ता ने आरटीआई में अपनी उत्तर पुस्तिका की प्रति मंगवाई। प्रति मिलने पर पाया कि प्रश्नों के अच्छे उत्तर लिखे थे, जिस पर और अधिक अंक मिलने चाहिए थे। करीब 4 प्रश्नों पर बहुत कम अंक दिए गए हैं। रिटोटलिंग में अंक नहीं बढ़ने पर उन्होंने एमपीएससी को पूनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन किया, लेकिन परीक्षा के पूनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान नहीं होने का हवाला देकर आवेदन खारिज कर दिया गया। ऐसे में याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट की शरण ली।