Mumbai News: पालघर की पहाड़ियों और बंजर जमीन पर लहलहा रही फसल - किस्मत बदलेगा हरा सोना

  • बंजर भूमि पर बांस लगा रहे आदिवासी किसान, हरे सोने की खेती से किस्मत बदलने की आस
  • केशव सृष्टि संस्था लगातार प्रोत्साहित कर रही
  • असम और मेघालय की प्रजाति लगाई जा रही

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-23 16:18 GMT

Mumbai News : योगेंद्र सिंह ठाकुर। महाराष्ट्र के पालघर जिले के किसान खेती-किसानी को मुनाफे वाला काम बनाने की कोशिश में जुटे हैं। बंजरभूमि पर यहां के आदिवासी बांस लगा रहे हैं। उम्मीद है कि बांस की फसल उन्हें कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकती है। विक्रमगढ़, जव्हार आदि क्षेत्रों में आदिवासी किसानों के बीच बांस यानी हरे सोने की खेती का चलन तेजी से बढ़ा है। बांस की खेती के लिए इन किसानों को केशव सृष्टि संस्था प्रोत्साहित कर रही है। खुद इस संस्था ने भी जव्हार में करीब 15 एकड़ क्षेत्र में बांस लगाए हैं। जानकारों का कहना है कि बांस को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती है। चौथे साल से ही कटाई की जा सकती है। यह बांस बेच कर अच्छी कमाई होती है। लगाने के बाद कम से कम 40 साल तक बांस बेच मुनाफा कमाया जा सकता है।

कमाई का अच्छा जरिया

एक किसान ने बताया कि बांस बहुपयोगी है। इससे घरेलू उपयोग के कई सामान बनाए जाते हैं। बांस से बने सजावटी उत्पादों की मांग भी लगातार बढ़ रही है। इमारत-पुल आदि निर्माण कार्यों के लिए इसकी हमेशा मांग रहती है। इसके रेशे से कपड़े भी बनाए जाते हैं। यह कमाई का अच्छा जरिया है। पूर्वोत्तर के राज्य के साथ ही मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में इसकी खेती बड़े स्तर पर की जाती है।

हरियाली लाएगी खुशहाली

विक्रमगढ़ के टेटवाली, चिंचपाडा, वाणीपाडा, वाकी जैसे 20 गांव के किसानों ने खाली पड़ी जमीन पर बांस की खेती शुरू की है। उन्हें उम्मीद है कि बांस की हरियाली उनके घरों में खुशहाली लाएगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। कमाई बढ़ने पर किसान आर्थिक रूप से सशक्त होंगे।

ऐसे होती है बांस की खेती

केशव सृष्टि संस्था के मुताबिक बांस की खेती के लिए मिट्टी बहुत अधिक रेतीली नहीं होनी चाहिए। दो फीट गहरा और दो फीट चौड़ा गड्ढा खोदकर बांस लगा सकते हैं। बांस लगाते समय गोबर की खाद डालते हैं। प्रति हेक्टेयर में बांस के 1,500 पौधे लगाए जा सकते हैं। एक हेक्टेयर में करीब चार लाख रुपए तक का मुनाफा हो सकता है।

सजावटी सामान बनाती हैं आदिवासी महिलाएं

केशव सृष्टि के सह-सचिव संतोष गायकवाड ने बताया कि यहां की 500 महिलाओं को रोजगार मिला है। ये बांस से सजावटी सामान बनाती हैं। असम, मेघालय जैसे राज्यों में होने वाली बांस की विशेष प्रजातियों की खेती भी पालघर के आदिवासी कर रहे हैं।

नितिन टोपले, किसान-विक्रमगढ़ के मुताबिक खाली पड़ी जमीन में बांस की खेती शुरू की है। हमें बताया गया है कि बांस से अच्छी कमाई हो सकती है। क्योंकि इससे कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। हमारे साथ कई किसानों ने बांस लगाए हैं।


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