जबलपुर: 1956 से अब तक मप्र हाईकोर्ट में एक भी एससी-एसटी जज की नियुक्ति नहीं
आरटीआई की जानकारी में खुलासा, सीजेआई को पत्र में कहा- सभी वर्गों को दें समान अवसर
डिजिटल डेस्क,जबलपुर।
डेमोक्रेटिक लाॅयर्स फोरम एवं सोसाइटी फॉर लीगल एड एवं ज्यूडिशियल रिफॉर्म्स ने सूचना के अधिकार के तहत मप्र हाईकोर्ट में अब तक नियुक्त किए गए न्यायाधीशों की जानकारी निकलवाई। संस्था ने आँकड़ों का विश्लेषण कर पाया कि 1956 से वर्ष 2023 तक कुल 204 न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई हैं। इनमें से एक भी जज अनुसूचित जाति एवं जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं करता। वहीं इनमें से कुछ नियुक्तियाँ (दो या तीन) केवल अन्य पिछड़ा वर्ग से की गयी हैं। सोसायटी के अध्यक्ष ओपी यादव एवं सचिव रवीन्द्र कुमार गुप्ता ने भारत के प्रधान न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्यों और सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर माँग की है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में सभी (ओबीसी, एससी व एसटी) वर्गों को समान अवसर दिया जाए।
अधिवक्ता रवीन्द्र गुप्ता ने बताया कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में पुराने मध्य प्रदेश में एवं छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद 1956 से लेकर आज 2023 तक न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में जानकारी एकत्र की गयी। जानकारी में यह बात सामने आई कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग से एक भी न्यायाधीश को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अब तक नियुक्त नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि न तो न्यायिक कोटे से न्यायिक अधिकारियों का चयन किया गया और न ही उच्च न्यायालय के प्रैक्टिसिंग अधिवक्ताओं में से किसी का चयन किया गया। उनका कहना है कि चूंकि इन वर्गों से कोई भी न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया गया है, अतः मध्य प्रदेश से भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक इस वर्ग से कोई नहीं पहुँच सका। पत्र में संविधान का अनुच्छेद 217 (2) की ओर ध्यान आकर्षित करते हुये कहा गया कि भारत का नागरिक हो, कम से कम दस वर्षों तक भारत के क्षेत्र में न्यायिक पद पर रहा हो अथवा कम से कम दस वर्षों तक लगातार उच्च न्यायालय या दो या अधिक ऐसे न्यायालयों का वकील रहा हो, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता रखता है। अतः यह आवश्यक है कि सामाजिक समानता बनाए रखने के लिए प्रतिभाशाली और योग्य उम्मीदवारों को अवसर और प्रतिनिधित्व देना न्यायोचित होगा। पत्र में स्पष्ट किया गया कि आरक्षण की माँग नहीं की गई है, केवल समान अवसर और योग्यता की माँग की गई है।