पीएससी परीक्षा 2019: कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं
- हाई कोर्ट ने आवेदक पर लगाया 20 हजार रुपए का जुर्माना
- अभ्यर्थियों को पीएससी की प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा में अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया जाए।
- हाई कोर्ट ने 27 अप्रैल 2023 को नोटिस जारी करके जवाब माँगा था।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। मप्र राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में राज्य शासन द्वारा किए गए संशोधन को चुनौती देने के मामले में याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया आवेदन कोर्ट ने खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट ने समान रिलीफ वाला एक आवेदन निरस्त करने के बाद दूसरा आवेदन पेश करने पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
चीफ जस्टिस रवि मलिमठ व जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने आवेदक भानू प्रताप सिंह तोमर पर 20 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया।
जबलपुर निवासी भानू प्रताप सिंह ने पिछले वर्ष याचिका दायर कर माँग की थी कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को पीएससी की प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा में अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया जाए।
राज्य सेवा परीक्षा नियमों में मध्य प्रदेश शासन ने पूर्व की सरकार द्वारा 17 फरवरी 2020 किए गए संशोधन को निरस्त करके 20 दिसंबर 2021 को पुन: संशोधन किया था। इसके तहत चयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सभी वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों से भरे जाने की व्यवस्था पुनः स्थापित की गई।
यह नियम पीएससी 2019 से 2023 तक की समस्त भर्ती परीक्षाओं में लागू किया जा चुका है। याचिकाकर्ता ने इसी को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने 27 अप्रैल 2023 को नोटिस जारी करके जवाब माँगा था। इसी बीच ओबीसी, एससी-एसटी एकता मंच व अन्य को अनावेदक बनाया गया।
याचिकाकर्ता ने पूर्व में एक आवेदन देकर माँग की थी कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में शामिल करने से रोका जाए। कोर्ट ने 23 सितंबर को आवेदन निरस्त कर दिया। इसके बाद 26 दिसंबर को पुन: समान माँग के लिए आवेदन पेश कर दिया।
अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने आपत्ति पेश की। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए 20 हजार की कॉस्ट के साथ आवेदन निरस्त कर दिया।