90 प्रतिशत शिक्षक चले चुनावी ड्यूटी में, कई स्कूलों में पड़ गए ताले
शिक्षण व्यवस्था होगी प्रभावित, अतिथि शिक्षक भी नहीं कर सकेंगे भरपाई
डिजिटल डेस्क जबलपुर। ऊपरी तौर पर देखने में यही लगता है कि चुनाव कराने की पूरी जिम्मेदारी शिक्षकों की ही है। यही वजह है कि चुनावी घड़ी आने के साथ ही सबसे ज्यादा असर स्कूलों पर नजर आता है। इस बार भी ऐसी ड्यूटी लगाई गई कि जिले के अधिकांश स्कूल पहली बार में ही खाली हो गए। अब, बगैर शिक्षक के पढ़ाई तो होगी नहीं लिहाजा, दीपावली की छुट्टियाँ काफी पहले से ही शुरू हो गई हैं और वक्त से पहले ही कई स्कूलों में ताले लटकने लगे हैं।
20 से पहले पढ़ाई के आसार नहीं
दीपावली की छुट्टियाँ खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में शुरू हो चुकी हैं। दीपोत्सव वैसे भी 15 नवंबर को भाई दूज तक चलने वाला है। इसके ठीक दो दिन बाद शुक्रवार को मतदान होना है। बाद में बचता है शनिवार, जिसमें स्कूल खुलने की उम्मीद करना बेमानी है। रविवार के बाद सीधे 20 नवंबर सोमवार से ही पढ़ाई शुरू होने के आसार हैं।
बच्चे ही छात्र, बच्चे ही मास्साब
चुनाव और स्कूलों का गहरा नाता है। वैसे तो मतदाता सूची को अपग्रेड करने में भी शिक्षा विभाग की मदद ली गई। चुनावी आचार संहिता लगने के साथ ही स्कूलों की पढ़ाई लडख़ड़ाने लगी थी। बाद में जैसे-जैसे शिक्षक प्रशिक्षण में उतारे गए, कक्षाओं में सूनापन बढऩे लगा। जिले में शिक्षा विभाग से तकरीबन 7 हजार शिक्षकों-कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी में उतारा गया है। काफी कुछ क्लासों में कैप्टन को पढ़ाने की जिम्मेदारी तक सौंपी गई।
नियमित शिक्षक की भरपाई नहीं
वैसे कई स्कूलो में अतिथि शिक्षकों की तैनाती पहले से ही है। लेकिन जानकारों का कहना है कि रेगुलर शिक्षक की भरपाई अतिथि से नहीं की जा सकती है। सामान्य तौर पर प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में शिक्षकों के विकल्प हो सकते हैं लेकिन हायर सेकेंड्री क्लासेज में अध्यापन प्रभावित होना तय है।