उपाय: मच्छरों के उत्पत्ति स्थलों पर गप्पी मछलियां छोड़ने के लिए जिला प्रशासन चलाएगा विशेष अभियान

मच्छरों के उत्पत्ति स्थलों पर गप्पी मछलियां छोड़ने के लिए जिला प्रशासन चलाएगा विशेष अभियान
  • 5 जुलाई तक प्रतिदिन उपाय योजना
  • गड्‌ढे आदि में पानी जमा न रखने का सुझाव
  • घर के आसपास जमा पानी में दवा का छिड़काव

डिजिटल डेस्क, गोंदिया । राष्ट्रीय कीटकजन्य रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत जिले में मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, चंडीपुरा एवं हाथीरोग जैसे बीमारीयों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए जिला प्रशासन ने जिला मलेरिया अधिकारी डाॅ. विनोद चव्हाण की संकल्पना से सारे जिले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अंतर्गत आने वाले गांवों में 5 जुलाई तक प्रतिदिन उपाय योजना करने का निर्णय लिया है।

इसके अनुसार हर गांव में स्थायी एवं अस्थायी मच्छर उत्पादन स्थलों पर स्वास्थ्य कर्मचारी, स्वास्थ्य सेवक, आशा सेविका की मदद से गांव के जनप्रतिनिधियों एवं प्रतिष्ठित नागरिकों के सहयोग से गप्पी मछलियां छोड़ी जाएगी। यह मछलियां मच्छरों के इल्लियों को खा लेती है। जिससे नए मच्छर पैदा नहीं होते। इसके साथ ही ग्रामीणों को गप्पी मछलियों का महत्व भी समझाते हुए प्रात्यक्षिक कर प्रदूषित जल संचय के स्थानों पर मछलियां छोड़ी जाएगी। साथ ही ग्रामीणों को मच्छरों की पैदावार होने वाले स्थानों काे नष्ट करने, गड्ढों में मिट्टी डालने, नालियों को साफ रखने, सप्ताह में एक दिन सूखा दिवस पालने, जहां हमेशा पानी जमा रहता है ऐसे स्थानों पर गप्पी मछलियां छोड़ने, शौचालय में वेंटिलेटर पाइप में जाली लगाने, प्रतिबंधात्मक उपाययोजना के संबंध में स्वास्थ्य शिक्षा देने का आह्वान जिला मलेरिया अधिकारी डा. विनोद चव्हाण ने किया है।

जिला स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. नितीन वानखेड़े ने कहा है कि जनसहयोग से ही मलेरिया के फैलाव पर नियंत्रण पाया जा सकता है। गप्पी मछलियां यह मच्छरों के इल्लियों को खा लेती है, जिसके कारण इस अभियान को समय-समय पर पूरे वर्ष भर चलाने से कीटकजन्य बीमारीयों की रोकथाम करने में मदद मिलने की बात जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. अभिनवकुमार वाघमारे ने कहीं है। गप्पी मछलियां पानी में उपस्थित मच्छरों के गारवा को खा जाती है। जिससे घरों में मच्छर कम होते है। बाजारों के रासायनिक उत्पादन लेने के बजाय यह उपाय सस्ता और सुरक्षित है। गप्पी मछलियों को टंकी में रखने पर वहां ऑक्सिजन युनिट की आवश्यकता नहीं होती। उनका आहार भी अन्य मछलियों की तुलना में कम होता है। गप्पी मछलियां अंडे न देते हुए पिल्ले देती है, जिसके कारण उनका जीवनकाल अन्य मछलियों की तुलना में अधिक होता है।

नागरिक करें सहयोग : जनसहयोग से मच्छरों के उत्पत्ति स्थलों पर गप्पी मछलियां छोड़ने से निश्चित रूप से मच्छरों की पैदावार नियंत्रित होगी और इससे कीटकजन्य बीमारीयों पर नियंत्रण लगेगा तथा पॉजिटीव मरीजों की संख्या में भी कमी आएगी। यह जैविक उपाय योजना सस्ती और अच्छे परिणाम देने वाली हंै। हर गांव में जन सहयोग से इस अभियान को क्रियान्वित करने से कीटकजन्य बीमारीयों को रोकने में मदद मिलेगी। - डाॅ. नितीन वानखेड़े, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, गोंदिया


Created On :   29 Jun 2024 1:54 PM GMT

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