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Chandrapur News: औने - पौने दामों में बिक रहा सफेद सोना , किसानों की लागत नहीं निकल रही
- आर्थिक संकट में किसान
- सरकार नहीं दे रही उचित मूल्य
- सरकारी सहायता की आस
Chandrapur News नकदी फसल के रूप में किसान बड़ी मात्रा में कपास की खेती करते हैं। लेकिन किसानों का सफेद सोना मानी जाने वाली कपास की कीमत दिन-ब-दिन कम होने से किसान हताश हो गए हैं। कपास की फसल से होनेवाली आय से ज्यादा लागत है। किसान 7,000 रुपए की कम दर वहन नहीं कर सकते। किसान हताश हैं। इसलिए किसानों ने कपास के दाम बढ़ने की उम्मीद जताई है। जिले के राजुरा, कोरपना, जिवती तहसील कपास उत्पादन में अग्रणी माने जाते हैं।
हालांकि, किसानों को डर है कि अब सफेद सोना नाम मात्र का रह गया है क्योंकि कपास की एक निश्चित कीमत मिल रही है। निजी बाजार में कपास की कीमत 7 हजार रुपए मिलने से किसानों की कपास की उत्पादन लागत नहीं निकल पाती है। किसानों को बड़ी आर्थिक मार पड़ रही है। लेकिन सरकार किसानों के इन ज्वलंत मुद्दों का समाधान करने को तैयार नहीं है। इससे किसान दिन-ब-दिन कर्जदार होते जा रहे हैं।
उत्पादन से खर्च महंगा होने से किसान कम कीमत में कपास नहीं बेच सकते। लेकिन मजबूरी मंे किसानों को निजी व्यापारियों को 7 हजार रुपए कवडीमोल दाम में कपास बेचना पड़ रहा है। प्रकृति किसानों को साथ नहीं दे रही, सरकार किसानों से साथ खड़ा रहने को तैयार नहीं जिससे किसान बेबस हो गया है। कपास चुनने का खर्च महंगा हुआ है। किसानों को कपास को कम दाम में बेचना पड़ता है, लेकिन उन्हें कपास चुनने के लिए 8 से 9 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बाहरी मजदूर लाने पड़ते हैं। इस समय चारों ओर कपास चुनने की तैयारी शुरू हो चुकी है और किसानों को कपास चुनने के लिए मजदूरों की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। कपास चुनने का खर्च महंगा होने, कपास को बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिला, अच्छी कीमत नहीं मिलने से कपास फसल किसान असमर्थ है।
कम दाम में बेचना पुराता नहीं : किसान हर साल कपास पर भारी रकम खर्च करते हैं। हालांकि, निजी बाजार में कपास को 7 हजार ही भाव मिल रहा है। जिससे कपास कम दाम में बेचना पुराता नहीं है। इसलिए सरकार को कपास के दाम बढ़ाने चाहिए। -भास्कर जुनघरी, किसान, गोवरी
Created On :   23 Nov 2024 6:34 PM IST