खतरा: इकोर्निया से खतरे में तालाब का अस्तित्व
350 मछुआरों के परिवारों पर आर्थिक संकट
डिजिटल डेस्क, राजुरा । शहर के नगर पालिका कार्यालय के सामने अत्यंत प्राचीन निजामकालीन तालाब जलीय वनस्पति इकोर्निया के जाल में जकड़ गया है। इस पर निर्भर मत्स्यपालन करने वाले लगभग 350 मछुआरों के परिवारों पर आर्थिक संकट आ गया है। पिछले 3 वर्षों से मत्स्यपालन करने वाले लोगों का संघर्ष शुरू है। इस ओर नगर पालिका प्रशासन का पूरी तरह से ध्यान नहीं है। संकट में घिरे मत्स्य व्यवसाय करने वाले मछुआरों को अब तक कुछ भी मदद नहीं मिली। तालाब भी स्वच्छ नहीं किया गया है। तालाब स्वच्छ करने के नाम पर लाखों रुपये खर्च हुए हैं। किंतु समस्या जैसे थे बनी हुई है। इसके चलते नगर पालिका प्रशासन के कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह निर्माण हो गया है। शहर के मालगुजारी तालाब निजामशाही के समय का है। वर्तमान स्थिति में 11.87 हेक्टेयर क्षेत्र में इस तालाब फैला हुआ है। तालाब के पानी के कारण शहर का भूजलस्तर भी कायम रखने में मदद होती है। 1961 से यह तालाब मछली पालन के लिए मच्छिंद्र मत्स्य पालन सहकारी संस्था को हस्तांतरित किया गया। संस्था में लगभग 350 सदस्य हैं।
तालाब पर मत्स्य पालन व्यवसाय सुचारू रूप से शुरू था। प्रतिवर्ष लगभग 25 लाख की मछलियों की बिक्री इस तालाब से की जाती थी। इस पर ही संस्था के सदस्यों के परिवार की उपजीविका निर्भर है। लेकिन पिछले 3 वर्षों से जलीय वनस्पति ने इस तालाब को निगल लिया है। इसके चलते पूर्ण रूप से मछली पालन का व्यवसाय ठप पड़ गया है। मछुआरों का व्यवसाय बंद होने से उनके परिवार पर आर्थिक संकट आ गया है। इस संदर्भ में शासन से कई बार ज्ञापन दिया गया, लेकिन किसी भी तरह की मदद नहीं मिली। वर्ष 2019-20 में कोविड संकट में इकोर्निया ने तालाब को पूरी तरह से निगल लिया। तब से मछुआरों का संघर्ष शुरू है। 2020 में सम्पूर्ण तालाब इकोर्निया से ढका होने के कारण आक्सीजन की स्तर कम हुआ। इससे मछलियां मर गईं। उनका पंचनामा किया गया था। लेकिन इसकी नुकसान भरपाई मच्छिंद्र मच्छी पालन सहकारी संस्था को अब तक नहीं मिली है। इस संदर्भ में पालकमंत्री, विधायक, सांसद, जिलाधिकारी, मुख्याधिकारी इन सभी को ज्ञापन दिया गया है। कितु किसी भी तरह की कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने से मछुआरों पर भारी संकट निर्माण हो गया है।