रबीन्द्र वाचनालय नाट्य प्रस्तुति: टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहांनियों पर आधारित 'रबीन्द्र वाचनालय' की मनमोहक नाट्य प्रस्तुति संपन्न
डिजिटल डेस्क, भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहांनियों पर आधारित नाटक 'रबीन्द्र वाचनालय' की मनमोहक नाट्य प्रस्तुति शहीद भवन में मंचन किया गया। कहानी का निर्देशन मनोज नायर ने किया हैं। वे 30 वर्षों से रंगमंच में सक्रिय है। कोलकाता की प्रसिद्ध थिएटर आर्टिस्ट सुश्री संजिता मुखर्जी ने बाउल गायन कर सबका दिल जीत लिया।
निर्देशकीय
रवींद्रनाथ टैगोर का सम्पूर्ण साहित्य वो फिर उनकी कविताएँ हों उपन्यास हों निबंध हों गीत हों या फिर कहानियां जिन्हें कोई अपने जीवन में पढ़ना चाहे तो ये जीवन कम पड़ जायेगा, ऐसी कोई परिस्थिती नहीं, विषय नहीं, भाव या रस नहीं, वर्ग नहीं जिसके लिये या जिसके बारे में उन्होंने लिखा ना हो। प्रस्तुत कहानियां छात्रों द्वारा कई कहानियों को पढ़नें के बाद चुनी गई हैं, कहानियों की तैयारियों में कहानी के किरदार, परिवेश, काल को समझने के लिये कई अभ्यास से गुजरना पड़ा, प्रत्येक कहानियां सामाजिक, मानसिक और रिश्तों के बीच के अंर्तसंबंधों को उजागर करती है। कहानियों के आंतरिक मर्म को नाटकीयता में प्रस्तुत करना थोड़ा कठिन रहा, उन मर्मो के गूढ़ अर्थों को समझकर आंतरिक व्यथा को कथा को यथार्थवाद के साथ शैलीबद्ध व्यवहार करने का प्रयास है।
कथाभिनय रवींद्र वाचनालय
चार कहानियों को एक सूत्र में पिरोने के लिये वाचनालय की अवधारणा में प्रस्तुत करना थोड़ा आसान रहा, चार कहानियां सजा, अंतिम प्यार, त्याग, धन कि भेंट में रिश्तों का ताना-बाना, कला के अमूर्त रंग, धर्म जात की बेड़ियों और लालच की मृग तृष्णा की परिस्थियों को प्रस्तुत करता है जो आज भी प्रासंगिक है।
चारों कहानियों का सार
धन की भेंट
यह कहानी जगन्नाथ नाम के एक बेहद कंजूस बूढ़े व्यक्ति की है, जिसने थोड़ा सा धन बचाने के लिए अपनी बीवी और बहु का उचित इलाज नहीं करवाया, परिणाम स्वरूप उनकी मृत्यु के बाद उसका बेटा भी उसके पोते गोकुल को लेकर घर से पलायन कर जाता है। अपने कंजूस स्वभाव से ग्रस्त जगन्नाथ अपने पोते गोकुल की मृत्यु का कारण बनता है तथा पागल हो स्वयं भी प्राण त्याग देता है।
सजा
प्रस्तुत कहानी एक परिवार के दो जोड़ो की है। परिवार में काफी अन बन होती रहती है। एक शाम बड़े भाई द्वारा क्रोध में अपनी पत्नी की हत्या कर दी जाती है। पत्नी गई तो दूसरी मिल जाएगी पर भाई नहीं। यह बात सोच कर छोटा भाई अपनी स्त्री को आरोपी सिद्ध कर देता है। पति के हाथों छली गई स्त्री फांसी का वरण कर लेती है। पिता द्वारा छोटी सी उमर में ब्याही बालिका अंत में पति के परिवार द्वारा भी त्याग दी जाती है। अतः वह न अपने पिता की रह जाती है, न पति की।
अंतिम प्यार
एक चित्रकार की अद्वितीय रचना करने की इच्छा और सामाजिक रूढ़ियों के बीच चलने वाले अनवरत द्वंद पर आधारित एक कथा।
त्याग
यह कहानी एक गांव के दो ब्राह्मण व्यक्ति के बीच की कहानी है।
(गांव का प्रधान) हरिहर मुखर्जी और प्यारीशंकर
प्यारीशंकर के दामाद ने ससुराल में चोरी करके बैरिस्टर बनने विलायत भाग गया।
जब पांच साल बाद गांव लौटा और अपने पत्नी को लेने आया तो (हरिहर मुखर्जी) प्यारी शंकर को लड़की भेजने से मना कर दिए और बोले अपने लड़की को दामाद के साथ भेजे तो तुम्हे गांव और जात छोड़ना होगा। प्यारी शंकर अपनी लड़की को भेज कर गांव और जात छोड़ कलकत्ता में बस गया और इस चीज का बदला लेने का प्रण लिया। प्यारी शंकर अपना बदला हरिहर मुखर्जी के बेटे का विवाह शूद्र कन्या से करवा कर लेता हैं।
मंच पर
सजा - अनिमेष सावंत, अनुष्का रणदिवे, नेहा यादव, विराज नाईक
अंतिम प्वार - शिवम शर्मा, विशाल भाटी, कंचन विश्वास, अर्चना केसरवानी
त्याग - प्रीति बिरहा, अमरेश कुमार, प्रकाश कुमार, विजय आर जांगिड़
घन की भेंट - अनुराग तिवारी, साहिल वर्मा, करिश्मा बोरो, राम प्रताप सिंह
रवि लाइब्रेरीअन - ऋषभ कुमार चतुर्वेदी
मंच पार्श्व
संगीत एवं गायन - संजिता मुखर्जी, अभी श्रीवास्तव
ताल वाद्य और पर्कशन - जय खरे, रश्मि कुकरेती
गिटार - स्वप्निल प्रधान
प्रकाश परिकल्पना - धनेन्द्र कावड़े
सहयोग - हैदर अली, मार्क फर्नाडीस
वस्त्र विन्यास - स्मिता नायर
सहयोग - राकेश नामदेव, आदर्श ठस्सु
आंगिक गति - सुजीत कलामंडलम
रूप सज्जा - किरण साहू एवं प्रथम वर्ष के छात्र
कहांनियाँ - गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर
निर्देशन - मनोज नायर
विशेष सहयोग - विक्रांत भट्ट, चैतन्य आठले, अविजित सोलंकी, शरद मिश्रा, अर्जुन सिंह
पोस्टर डिजाईन - जय खरे
ब्रोशर डिजाईन - शेख इक्तेदार (साहिल)