फिल्म तिकड़म सक्रीनिंग: क्लाइमेट चेंज और माइग्रेशन के मुद्दों को उठाती फिल्म “तिकड़म” की स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी में हुई विशेष स्क्रीनिंग

  • एक्टर अमित सियाल और निर्देशक विवेक आंचलिया के साथ एसजीएसयू स्टूडेंट्स ने देखी फिल्म
  • एमपी टूरिज्म की एडिशनल मैनेजिंग डायरेक्टर बिदिशा मुखर्जी भी कार्यक्रम में रहीं मौजूद

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-03 10:21 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी (एसजीएसयू) द्वारा एमपी टूरिज्म बोर्ड के सहयोग से फिल्म “तिकड़म” की विशेष सक्रीनिंग का आयोजन सोमवार को विश्वविद्यालय के वनमाली सभागार में किया गया। इस दौरान कार्यक्रम में फिल्म के निर्देशक विवेक आंचलिया, एक्टर अमित सियाल बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। वहीं एमपी टूरिज्म बोर्ड से एडिशनल मैनेजिंग डायरेक्टर (एएमडी)बिदिशा मुखर्जी और एसजीएसयू की ओर से चांसलर डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, वाइस चांसलर डॉ. अजय भूषण, कुलसचिव डॉ. सितेश सिन्हा और रबीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी की प्रो. चांसलर डॉ. अदिति चतुर्वेदी मौजूद रहीं।

कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी द्वारा दिया गया। उन्होंने अपने वक्तव्य में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय से परिचय कराया। उन्होंने बताया कि यह एक कौशल आधारित विश्वविद्यालय जहां इंडस्ट्रीज के साथ पार्टनरशिप में कोर्सेंज को संचालित किया जा रहा है जिसका उद्देश्यस्टूडेंट्स को 60 प्रतिशत प्रायोगिक एवं अनुभव आधारित शिक्षा प्रदान किया जाना है और 40 प्रतिशत क्लास बेस्ड लर्निंग। साथ ही उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा फिल्म प्रोडक्शन और एनिमेशन के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों से अवगत कराया।

इसी कड़ी में एमपी टूरिज्म बोर्ड की एएमडी बिदिशा मुखर्जी ने टूरिज्म को प्रोत्साहित करने किए जा रहे मप्र शासन के प्रयासों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि फिल्म टूरिज्म को बढ़ाने 1.5 करोड़ तक की सब्सिडी ऑफर की जा रही है। इसके अलावा फिल्म इंफ्रास्ट्रक्चर को प्रमोट करने के लिए 75 लाख तक की अलग सहायता प्रदान की जा रही है। उन्होंने बताया कि मप्र में पर्यटन बहुत संभावनाएं हैं क्योंकि यहां वाइल्ड लाइफ से लेकर रिलिजियस टूरिज्म के कई विकल्प मौजूद हैं।

तिकड़म फिल्म के डायरेक्टर विवेक आंचलिया ने फिल्म पर बात करते हुए कहा कि यह 2007 में लिखी हुई कहानी है जो 2018 में बनाने पर विचार शुरु हुआ। तब इसका नाम “पापा के जूते” रख रहे थे, फिर इसके बाद “गुब्बारे” रखने का सोचा था। पर एक दिन यू हीं अचानक “तिकड़म” नाम दिमाग में आया। वह परफेक्ट नाम लगा, तब यही रख दिया। आगे वे बताते हैं कि यह फिल्म क्लाइमेट चेंज और माइग्रेशन के मुद्दे पर आधारित है।

मिर्जापुर, महारानी और वासेपुर जैसी प्रतिष्ठित फिल्म और वेबसीरीज में काम कर चुके एक्टर अमित सियाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि “यह फिल्म एक अनूठा प्रोजेक्ट थी। इसी कारण जब इसका पिच डेक सुना तो केवल 10 मिनट में फिल्म करने के लिए हामी भर दी थी। इस तरह की फिल्म से जुड़ना बहुत ही महत्वपूर्ण है। फिल्म में ड्रामा के साथ-साथ ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मुद्दे पर भी बात की गई है। फिल्म में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी को भी बहुत ही खूबसूरत एंगल के साथ दिखाया गया है। कुल-मिलाजुला कर यह एक फैमिली एंटरटेनर फिल्म है। आगे उन्होंने कहा कि इस फिल्म में दर्शकों को मेरा नया किरदार देखने को मिलेगा। मैं लंबे वक्त से इस तरह की फिल्म का इंतजार कर रहा था क्योंकि यह बिल्कुल अलग तरह की फिल्म है। मैं इस तरह का किरदार करना भी चाह रहा था।वहीं फैमिली फिल्मों के कमर्शियली सक्सेसफुल न होने के सवाल पर अमित सियाल ने कहा कि इंडस्ट्री में वैसा ही काम होता है जैसा ऑडियंस चाहती है। अगर लोगों को फैमिली फिल्म अच्छी लगती हैं तो उन्हें अन्य लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए तभी ऐसी और भी फिल्में बनना प्रारंभ होंगी। नहीं तो मार-धाड़, गाली गलौच वाली फिल्में का ही बोलबाला होगा।

यह है फिल्म “तिकड़म” की कहानी

कहानी शुरू होती पर्यटन स्थल सुखताल में एक होटल में काम कर रहे प्रकाश (अमित सियाल) से, जो कम सैलरी में भी अपने बच्चों के साथ खुश है। वह दोगुनी सैलरी मिलने पर भी अपने बच्चों और माता-पिता को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। सुखताल में कई साल से बर्फ नहीं पड़ रही है, ऐसे में होटल बंद हो जाता है। खुद फटे जूतों से काम चला रहा प्रकाश अपने बच्चों को ख्वाहिशों को पूरा नहीं कर पाता है। उसे होटल की तरफ से मुंबई में काम मिल जाता है। जब उसके बच्चों चीनी (आरोही साउद) और समय (अरिष्ट जैन) को पता चलता है कि पिता नौकरी करने के लिए शहर जा रहे हैं तो वह अपने स्कूल के दोस्त भानु (दिव्यांश द्विवेदी) के साथ मिलकर सुखताल में बर्फ गिरवाने के कई तिकड़म करते हैं, ताकि जो पिता पर्यटन कम होने के कारण अपनी नौकरी खोकर घर से दूर दूसरे शहरों में गए हैं, वे वापस आ सकें। उनका नारा होता है बर्फ गिराओ, पापा लाओ।

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