संगीत मंथन: रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा दो दिवसीय संगीत कार्यशाला का हुआ समापन

नई शिक्षा नीति के तहत विश्वविद्यालयों में संगीत शिक्षण को एकीकृत करें: पद्मश्री पंडित उमाकांत गुंदेचा

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-27 14:53 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगौर विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा मानविकी एवं उदार कला संकाय तथा टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के सौजन्य से दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन हुआ। "संगीत मंथन" विषय पर दूसरे दिन आयोजित इस कार्यशाला के पहले सत्र में बतौर वक्ता डॉ. अवधेश तोमर, सागर विश्वविद्यालय, डॉ. नीना श्रीवास्तव, नूतन कॉलेज भोपाल, डॉ. भास्कर खांडेकर, जबलपुर, श्री अभय फगरे, भोपाल, सुश्री नीता पंडित, दिल्ली, श्री अशोक जमनानी, होशंगाबाद, अध्यक्षीय उदबोधनः पंडित किरण देशपांडे, डॉ. नागेश त्रिपाठी रीवा, डॉ. प्रकाश चन्द्र कडोतिया इंदौर, डॉ. देवाशीष बैनार्जी रीवा वहीं द्वितीय सत्र में वक्ता डॉ. स्नेहा कामरा "श्वेताम्बरा", इंदौर, सुश्री सुलेखा भट्ट, भोपाल, श्री भुवनेश कोमकली, देवास श्री संजीव श्री, भोपाल, डॉ. रवि पंडोले, बरकतुल्लाह वि.वि., डॉ. सुधा दीक्षित नूतन कॉलेज, भोपाल, श्री पियूष ताम्बे श्रीमती प्रतीक्षा ताम्बे, अध्यक्षीय उदबोधनः पद्मश्री पंडित उमाकांत गुंदेचा ने परिचर्चा की साथ ही उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत विश्वविद्यालयों में संगीत शिक्षण को एकीकृत करें। समापन समारोह का गरिमामय संचालन टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक एवं संगीत कार्यशाला के समन्वयक श्री विनय उपाध्याय ने किया।

संगीत पाठ्यक्रम की योजना बनाते समय परिचर्चा के दौरान विषय विशेषज्ञों ने पाठ्यक्रम को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को रखा जिसमें संगीत का इतिहास और सिद्धांत के अंतर्गत भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख युगों और संगीतकारों का अध्ययन । उनके वाद्य यंत्रों का परिचय, विभिन्न वाद्य यंत्रों की जानकारी जैसे बांसुरी, तबला, सितार आदि के परिचालन का अभ्यास और उनका सही उपयोग की जानकारी देना। दूसरे पहलू स्वर और गायन में मूलभूत सुर और स्वरों का अभ्यास। विभिन्न प्रकार के गीतों का अभ्यास, जैसे शास्त्रीय, लोकगीत, भजन, आदि। गायन की तकनीकें और वोकल वार्म-अप एक्सरसाइज पर विशेष ध्यान देना। तीसरे पहलू में संगीत लेखन, रचना और संगीत लिखने की विधि तथा सरल संगीत रचनाएँ और कंपोजीशन टेक्निक्स पर चर्चा हुई। चौथे पहलू में प्रदर्शन और प्रस्तुति कौशल देने की कला एवं लाइव प्रदर्शन और रिकॉर्डिंग तकनीकें। विशेषज्ञो ने संगीत सॉफ़्टवेयर और तकनीक तथा संगीत उत्पादन और संपादन की मूल बातें पाठ्यक्रम में होनी चाहिए। विशेषज्ञ ने बताया कि संगीत का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। जिसके करण विभिन्न संस्कृतियों के पारंपरिक संगीत का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। पांचवें पहलू में प्रैक्टिकल अनुभव और समूह परियोजनाओं पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। साथ ही विश्वविद्यालय के साथ सामुदायिक कार्यक्रमों में प्रदर्शन के अवसर प्रदान करना चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में विशेषज्ञों ने सुझाव के तौर पर बताया कि पाठ्यक्रम में विभिन्न संगीत शैलियों और संस्कृतियों का समावेश करें। सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव पर भी जोर दें। विभिन्न संसाधनों जैसे पुस्तकें, ऑनलाइन कोर्स, और म्यूजिक ऐप्स का उपयोग करें। समूह में संगीत का अभ्यास करने से छात्रों में टीम वर्क और समन्वय की भावना विकसित होती है। नियमित अंतराल पर छात्रों को मंच पर प्रदर्शन का मौका दें ताकि वे अपनी प्रतिभा को निखार सकें और आत्मविश्वास बढ़ा सकें।

कार्यशाला के समापन सत्र में प्रति कुलपति डॉ संगीता जौहरी ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ रुचि मिश्रा तिवारी, डीन मानविकी एवं उदार कला संकाय, एचओडी डॉ हर्ष शर्मा और समस्त प्राध्यापकगण उपस्थित थे।

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