हिंदी दिवस पर अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद: विश्व रंग के अंतर्गत हिंदी दिवस पर हुआ अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन

  • विश्व रंग के अंतर्गत हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में छ: विश्वविद्यालयों में 'हिंदी पखवाड़े' का शुभारंभ
  • विश्व में हिंदी : हिंदी का विश्व: विषय पर हुआ अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-14 14:11 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। विश्व रंग के अंतर्गत हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र तथा मानविकी एवं उदार कला संकाय, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा 'हिंदी पखवाड़े' का भव्य शुभारंभ किया गया। कथा सभागार, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल में हिंदी पखवाड़े का शुभारंभ 'विश्व में हिंदी : हिंदी का विश्व' विषय पर आयोजित 'अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद' के साथ किया गया। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के पश्चात डॉ. संगीता जौहरी, प्रतिकुलपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा स्वागत उद्बोधन दिया गया। सभी अतिथियों का अभिनंदन अंगवस्त्रम और प्रतीक चिन्ह भेंट कर किया गया।

इस अवसर टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र द्वारा वैश्विक स्तर पर हिंदी पठन–पाठन के लिए तैयार किए गए 'हिंदी अर्जन पाठ्यक्रम का प्रस्तुतीकरण भी किया गया। इस अवसर पर विश्व रंग के अंतर्गत प्रकाशित प्रवासी साहित्य श्रृंखला की पुस्तक 'कनाडा की चयनित रचनाएँ' का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। डॉ. दीपक पाण्डेय, डॉ. नूतन पाण्डेय के संपादन में कनाडा के प्रवासी साहित्यकार 'धर्मपाल महेन्द्र जैन की रचना धर्मिता' पर प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा किया गया।

इस अवसर पर श्री धर्मपाल महेन्द्र जैन, वरिष्ठ साहित्यकार (कनाडा) ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर बहुत तेजी से हिंदी ने कदम बढ़ाए हैं। हिंदी के वैश्विक फलक को ध्यान में रखते हुए टोरंटो (कनाडा) में हमने हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए एक संस्था बनाई है। इसमें चार सौ सदस्यों की रचनात्मक भागीदारी है। कारावास में बंद बंदियों को हिंदी सिखाने के लिए भी हमने चार मार्गदर्शिकाएँ बनाई है। हिंदी के विकास के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्य करना बहुत जरूरी है।

समारोह की मुख्य अतिथि डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, प्रति कुलाधिपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आईसेक्ट समूह का मूल आधार हिंदी ही है। आईसेक्ट समूह के अध्यक्ष और विश्व रंग के स्वप्नदृष्टा श्री संतोष चौबे जी द्वारा चालीस वर्ष पूर्व हिंदी में रचित पुस्तक 'कम्प्यूटर एक परिचय' से इसका आरंभ हुआ था। आज वैश्विक स्तर पर हिंदी की जमीन तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य विश्व रंग के माध्यम से हो रहा है।

आपने आगे कहा कि आईसेक्ट विश्वविद्यालय समूह के सभी छः विश्वविद्यालयों- रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्यप्रदेश), डॉ. सी.वी. रमन विश्वविद्यालय, खंडवा (मध्यप्रदेश), बिलासपुर (छत्तीसगढ़), वैशाली (बिहार), आईसेक्ट विश्वविद्यालय, हजारीबाग (झारखंड) में हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी पखवाड़े का शुभारंभ किया गया है। आगामी 30 सितंबर तक विद्यार्थियों, प्राध्यापकों आदि के द्वारा हिंदी के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए रचनात्मक आयोजन किये जायेंगे।

विशिष्ट अतिथि अनुराग शर्मा, संपादक 'सेतु' (अमेरिका) ने अमेरिका में हिंदी की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी के प्रति लगाव सभी देशों में हैं। इसी दृष्टिकोण के चलते मैंने 'सेतु' पत्रिका की शुरुआत की। आज इसकी लोकप्रियता बहुत सारे देशों में हैं। हिंदी के विकास के लिए सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों को भी साथ लेकर चलना होगा। सभी का एकसाथ चलना ही हिंदी के लिए शुभ होगा।

हंसा दीप, वरिष्ठ लेखिका (कनाडा) ने हिंदी अध्यापन को लेकर अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मध्यप्रदेश का आदिवासी अंचल मेघनगर मेरी जन्मभूमि है। इसी छोटे से अंचल में रहकर हिंदी में पढ़ाई की। जब परदेश जाना हुआ तो सोचा कि मुझे तो सिर्फ हिंदी आती है, परदेश में जाकर क्या करूंगी, लेकिन आज हिंदी ही मेरी पहचान हैं। टोरंटो (कनाडा) में हिंदी की प्राध्यापक हूँ। अब तक हजारों लोगों को हिंदी पढ़ना लिखना सिखाया है। मैं हिंदी में ही हस्ताक्षर करती हूँ। हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सीधे दिल तक पहुँचती है।

आपने आगे कहा कि हमें हिंदी के प्रति अपनी हीन भावना को त्यागना होगा। अंग्रेजी और हिंदी के प्राध्यापकों को देखने का हमारा दृष्टिकोण ही भिन्न है। अंग्रेजी के प्रोफेसर और हिंदी के प्राध्यापक को एक समान 'सम्मान की दृष्टि' से देखना चाहिए।

अतिला कोतलावल, अध्यक्ष, हिंदी संस्थान (श्रीलंका) ने श्रीलंका में हिंदी की असीम संभावनाओं को बताते हुए कहा कि श्रीलंका में हिंदी का भविष्य बहुत उज्जवल है। मैं स्वयं सिंहली हूँ। मेरी मात्र भाषा सिंहली है। मैंने विदेशी भाषा के रूप में हिंदी का अध्ययन किया। विगत 24 वर्षों से मैं हिंदी पठन–पाठन का कार्य श्रीलंका में कर रही हूँ। श्रीलंका के 8 विश्वविद्यालयों और 80 विद्यालयों में हिंदी वैकल्पिक विषय के रूप में पढाई जा रही है। श्रीलंका में हिंदी फिल्मों और गीतों के प्रति लोगों में दीवानगी सी है। श्रीलंका में लोगों ने पुराने फिल्मों गीतों के कई संघ बनाए हुए हैं। मैं चार वर्ष के बच्चों से लेकर अस्सी वर्ष तक के वृद्ध लोगों को हिंदी पढ़ना–लिखना सिखाती हूँ। आज वैश्विक स्तर मेरी पहचान हिंदी भाषा से ही बनी है। हिंदी भाषा से मुझे बहुत प्रेम है।

डॉ. दीपक पाण्डेय, सहायक निदेशक, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी निदेशालय हिंदी के व्यापक प्रचार प्रसार में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। सरकार और संस्थानों के साथ–साथ लोगों को स्वयं भी अपनी भाषाओं और बोलियों के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए आगे आना चाहिए।

डॉ. नूतन पाण्डेय, सहायक निदेशक, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली ने इस अवसर पर कहा कि प्रवासी भारतीय विभिन्न देशों में हिंदी के विस्तार के लिए कार्य कर रहे हैं। इनके कार्यों को आपस में साझा करने से हिंदी का फलक और व्यापक होगा। विश्व रंग के अंतर्गत आयोजित यह परिसंवाद इस दिशा में एक सार्थक पहल है।

कार्यक्रम का सफल संचालन टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट द्वारा किया गया। श्री विनय उपाध्याय, निदेशक, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र द्वारा आभार व्यक्त किया गया। इस अवसर बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थीगण ने परिसंवाद में रचनात्मक भागीदारी की।

उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर अतिथियों द्वारा प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र, टैगोर नाट्य विद्यालय, संस्कृत, प्राच्य भाषा एवं भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र, बहुभाषा अनुवाद केंद्र, वनमाली सृजन पीठ, टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का भ्रमण किया गया।

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