भोपाल: त्रिकर्षी नाट्य समूह द्वारा नाटक “रोक लो उन्हें” का विशाल आचार्य के निर्देशन में हुआ मंचन

श्रीराम ताम्रकर और सुनील मिश्र के जीवन को याद करते हुए फिल्म मेकिंग की बारीकियों पर हुई चर्चा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-15 05:44 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। सुप्रतिष्ठित फिल्म विश्लेषकों श्रीराम ताम्रकर एवं सुनील मिश्र को समर्पित स्मृति प्रसंग कार्यक्रम का आयोजन मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी एवं टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केन्द्र, भोपाल के सहयोग से स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी परिसर में किया जा रहा है। कार्यक्रम के दूसरे दिन उद्बोधन सत्र के मुख्य वक्ताओं में प्रतिष्ठित फिल्म विश्लेषक मनमोहन चड्ढा, लेखक आत्माराम शर्मा और प्रतिष्ठित कला समीक्षक विनय उपाध्याय उपस्थित रहे। उनके साथ मंच पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की प्रो. चांसलर डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स और स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजय भूषण उपस्थित रहे।

 

समारोह में आत्माराम शर्मा ने बताया कि सुनील मिश्र जी जमीन से जुड़े रचनात्मक संस्कृति कर्मी थे। वहीं उन्होंने श्रीराम ताम्रकर को याद करते हुए कहा कि वे फिल्म मेकिंग की बारीकी में जाकर काम करते थे।

वहीं पुणे से आए फिल्म विश्लेषक मनमोहन चड्ढा ने अपने वक्तव्य में फिल्म मेकिंग पर बात की उन्होंने कहा कि आज फिल्म मेकिंग बहुत आसान हो गई है। यदि आपके पास मोबाइल है तो आप शॉर्ट फिल्म बना सकते हैं। अपने काम को दिखाने के लिए कई प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध हैं जहां बड़ी ऑडियंस उपलब्ध होती है। इसमें नए-नए लोग अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आएंगे तो नए विषयों और कहानियां लोगों को देखने को मिलेंगी।

 

वरिष्ठ कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में श्रीराम ताम्रकर के प्रयासों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सिनेमा की सार्थकता रचनात्मकता, कला, सोच, कौशल पर निर्भर करती है। विनय जी ने पुरस्कृत लघु फिल्म ' द एलिफेंट विस्परर्स' और विशाल भारद्वाज की आइफोन पर बनी फिल्म 'फुरसत" का उदाहरण देते हुए कहा कि इस डिजिटल समय में शॉर्ट फिल्म मेकिंग का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत और प्रयोगधर्मी हुआ है। नयी प्रतिभाओं के लिए यह सुनहरा दौर है। ओटीटी ने नया आसमान ही खोल दिया है।मीडिया शिक्षण संस्थानों और फिल्म उत्सवों के बढते दायरे ने संभावना के नये दरवाजें खोल दिए हैं।

 

इससे पहले रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की प्रो चांसलर डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स ने विश्वरंग पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह समारोह हम साहित्य, कला एवं संगीत पर आयोजित करते हैं। इसी को वृहद रूप में पेश करते हुए हमने फिल्म समारोह को भी 2020 में इसका हिस्सा बनाया था। फिर 2021 में हमने कोविड के बाद वर्चुअल दुनिया के प्रभाव को देखते हुए चिल्ड्रंस फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया। आगे उन्होंने बताया कि आज ओटीटी और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर फिल्म देखने का चलन बढ़ने के कारण अब फिल्म मेकिंग में बड़ी संख्या में युवा आ रहे हैं। यह अच्छी बात है। हमें उन्हें फिल्म मेकिंग और इससे जुड़े ज्ञान को पहुंचाने का अवसर प्रदान करना चाहिए जिससे बेहतर कहानियां लोगों तक पहुंच सकें।

कार्यक्रम पर आभार व्यक्त करते हुए स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉ. सितेश कुमार सिन्हा ने संस्कृति विभाग द्वारा किए गए इस आयोजन को एक आवश्यक पहल बताया और आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।

परिवार में बुजुर्गों की अहमियत को दर्शाता नाटक “कोई रोक लो” का किया गया मंचन

परिवार के बुजुर्गों की अहमियत को दर्शाता नाटक “रोक लो उन्हें” का मंचन गुरुवार को स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के मुक्ताकाश मंच पर किया गया। जिसमें बताया गया कि परिवार के बुजुर्ग उस माली के समान होते हैं जो बड़ी लगन और उम्मीद के साथ अपने परिवार रूपी बागीचे में रिश्तेनुमा पौधों को सींचते हैं, उनका पालन पोषण करते हैं। परंतु वृद्धावस्था में जब उनके अपनों से आत्मसम्मान को ठेस लगती है तो प्रत्याशा वृद्धावस्था में निराशा में बदल जाती है। फिर बुजुर्गों की अहमियत तब समझ आती है जब वे हमारे करीब नहीं होते, इसलिए समय रहते नाटक का संदेश है... रोक लो उन्हें। नाटक का मंचन त्रिकर्षि नाट्य समूह के कलाकारों द्वारा विशाल आचार्य के निर्देशन में किया गया। नाटक का लेखन सुनील मिश्र द्वारा किया गया था।

नाटक की कहानी

कहानी की शुरुआत परिवार के एक बुजुर्ग की रिटायरमेंट से होती है। रिटायरमेंट होते ही ससुर बहू को बोझ लगने लगता है और वह उससे बुरा बर्ताव करने लगती है जिसके चलते बुजुर्ग घर छोड़कर चला जाता है। बेटा अपने पिता को ढूंढने का प्रयास करता है लेकिन वे नहीं मिलते हैं। फिर एक दिन बहू को पता चलता है कि ससुर के नाम एक एलआईसी की पॉलिसी है जो मैच्योर हो गई है और उसकी रकम केवल ससुर को ही मिलेगी। इसके बाद वह ससुर को ढूंढने के लिए पति पर दवाब डालने लगती है। तब उन्हें पिता का पागल हमशक्ल मिलता है जिसे वे गलती से पिता समझकर घर ले आते हैं और प्रेम पूर्वक रहने लगते हैं। वह पागल अब उनसे गलत व्यवहार करता है पर वे खुशी-खुशी उनके साथ रहते हैं। वह पागल व्यक्ति एक बार उनके घर में घुसे चोरों की कोशिश को भी नाकाम कर देता है जिसके बाद पूरे परिवार हृदय से उन्हें प्रेम करने लगता है। अंत में पागलखाने से लोग आकर उस व्यक्ति को पकड़कर ले जाने की कोशिश करते हैं, तब परिवार को उस हमशक्ल व्यक्ति की सच्चाई पता चलती है। पर वे अब उसे ही अपना पिता और ससुर मानने लगे थे, सो जाने से रोकते हैं पर पागलखाने की टीम उसे भी ले जाती है और परिवार अब बस देखता रहता है और कहता है... रोक लो उन्हें... रोक लो उन्हें...।

मंच पर

आमिर, यश बालौदिया, भूमिका ठाकुर, मोनिका विश्वकर्मा, अनुज शर्मा, प्रभाकर, शिवेंद्र सिंह, नवीन, अधिराज सिंह बघेल, नितेश गौर

मंच परे

संगीत - सुरेंद्र वानखेड़े

कॉस्ट्यूम – रचना मिश्र

निर्देशन – विशाल आचार्य

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