सऊदी में तेल संयंत्रों पर हमले का भारतीय अर्थव्यस्था पर पड़ सकता है असर

सऊदी में तेल संयंत्रों पर हमले का भारतीय अर्थव्यस्था पर पड़ सकता है असर

Bhaskar Hindi
Update: 2019-09-17 16:30 GMT
सऊदी में तेल संयंत्रों पर हमले का भारतीय अर्थव्यस्था पर पड़ सकता है असर
हाईलाइट
  • सऊदी अरब के कच्चे तेल के उत्पादन में आई अब तक की सबसे बड़ी बाधा
  • भारत पर भी असर पड़ सकता है
  • क्योंकि सऊदी अरब
  • ईराक के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। यमन के ईरान समर्थित विद्रोही समूह हौती ने शनिवार को सऊदी अरब के अबक्विक संयंत्र और खुरियास तेल क्षेत्र पर ड्रोन से बमबारी की, जिस कारण वहां की सरकारी तेल कंपनी सऊदी अरामको को रोजाना 60 लाख बैरल (वैश्विक तेल आपूर्ति का 6 फीसदी) का उत्पादन रोकना पड़ा, बल्कि अपनी 20 लाख बैरल की अतिरिक्त क्षमता को भी रोकनी पड़ी। यह सऊदी अरब के कच्चे तेल के उत्पादन में आई अब तक की सबसे बड़ी बाधा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक है और दुनिया की 10 फीसदी तेल की आपूर्ति करता है। ऐसे में इसका भारत पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि सऊदी अरब, ईराक के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है।

तेल मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने हालांकि इस संभावना से इनकार किया है कि भारत पर इसका कोई असर पड़ेगा। उन्होंने कहा है, हमें भरोसा है कि इससे हमारी तेल आपूर्ति बाधित नहीं होगी, लेकिन सरकार स्थिति पर बराबर नजर रख रही है। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि अगर इसके कारण तेल की कीमतें बढ़ीं और लंबे समय तक ऊंची कीमत बनी रही तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ेगा, क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 83 फीसदी तेल का आयात करता है।

इनर्जी एंड करेंसी रिसर्च के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट अनुज गुप्ता ने कहा, सऊदी के अरामको कंपनी पर ड्रोन हमले के कारण कच्चे तेल की कीमत और बढ़ सकती है, क्योंकि यह कंपनी ओपेक के कच्चा तेल उत्पादन में पांच प्रतिशत का योगदान करती है। कल (सोमवार) स्थानीय वायदा बाजार में कच्चे तेल की कीमत 15 प्रतिशत बढ़ गई, जो जनवरी 1990 के बाद सर्वाधिक वृद्धि है। यह भारतीय रुपये पर नकारात्मक असर डालती, क्योंकि आयात बिल बढ़ सकता है। यदि कच्चे तेल की कीमत में यह वृद्धि बनी रहती है तो पेट्रोल, डीजल की कीमत तीन-सात रुपये तक बढ़ सकती है और इससे रुपये में भी गिरावट आ सकती है। गुप्ता ने कहा कि यदि हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई हुई तो मध्य पूर्व में भूराजनीतिक तनाव पैदा होगा। यह भी एक नकारात्मक पक्ष है और इससे वैश्विक आर्थिक हालात अस्थिर हो सकते हैं।

केडिया कमोडिटी के निदेशक, अजय केडिया ने कहा, कच्चे तेल की कीमत कल दोबारा 65.92 की सीमा पार कर 70.00 डॉलर प्रति बैरल की सीमा तक पहुंच गई, जो आने वाले समय में कीमत में वृद्धि का संकेत है, क्योंकि अगला सकारात्मक लक्ष्य 69.50 दिखाई देता है और यह 72.60 पर भी जा सकता है। लिहाजा दिन के कारोबार के दौरान और अल्पकालिक आधार पर कीमत बढ़ने की संभावना है और यह 72.65 डॉलर तक पहुंच सकती है।

उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब ने भारत को वित्त वर्ष 2018-19 में चार करोड़ टन से अधिक कच्चे तेल की आपूर्ति की, जबकि भारत का कुल आयात 20 करोड़ टन था। कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर की वृद्धि से देश का आयात 1.5 अरब डॉलर बढ़ जाता है। देश का चालू खाता घाटा जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 0.4 से 0.5 फीसदी है। भारतीय अर्थव्यवस्था वैसे ही मंदी का शिकार है, ऐसे में कच्चे तेल के दाम में वृद्धि से इसे बड़ा झटका लगेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इन हमलों के पीछे ईरान का हाथ बताया है, लेकिन जोर दिया है कि वह फिलहाल युद्ध नहीं चाहते। अगर इस मसले पर अमेरिका और ईरान के संबंध और बिगड़ते हैं, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगेगा, जो अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध के कारण पहले ही धीमी चल रही है। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज बिन सलमान ने कहा है कि हमलों के बारे में अभी किसी भी विवरण में नहीं गए हैं। हालांकि उन्होंने कहा है कि उत्पादन में कुछ गिरावट आएगी।

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने रविवार को एक ट्वीट कर हमले के पीछे ईरान का हाथ बताया था। उन्होंने कहा था कि सऊदी अरब पर करीब 100 हमलों के पीछे ईरान का हाथ है। इस बात के सबूत नहीं है कि हमला यमन की ओर से हुआ है। ईरान ने अमेरिका के इन आरोपों का खंडन किया है और इसे बेबुनियाद और बेतुका बताया है।

इस बीच सभी की नजर कच्चे तेल की कीमतों पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 10 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो भारत के तेल आयात पर इसका गहरा असर पड़ेगा।

 

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