जानिए स्वर्ण मंदिर की कुछ रहस्यमयी बातें, जिन्हें जानकर हैरान रह जाएंगे आप
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। स्वर्ण मंदिर अमृतसर में स्थित है। ये भारत के सिखों के लिए आस्था का केंद्र है। असल में ये मंदिर ना केवल सिखों के लिए बल्कि गैर-सिखों के लिए भी जाना जाता हैं। अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध, स्वर्ण मंदिर ने पंजाब के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो इसे दुनिया के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले आध्यात्मिक स्थानों में से एक है। आईए हम आपको इस जगह के कुछ दिलचस्प तथ्यों के बारे में बताते हैं।
पांचवें सिख गुरु ने बनवाया था ये मंदिर
पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जुन देव थे, जिन्होंने अमृतसर के केंद्र में दरबार साहिब का निर्माण करने की योजना बनाई थी। वर्ष 1604 में निर्माण पूरा हो गया था।
मंदिर हर जाति के लोगों के लिए है खुला
ज्यादातर मंदिरों में या किसी और धार्मिक स्थानों में आपने अक्सर एक ही प्रवेश द्वार देखा होगा, लेकिन दरबार साहिब चारों तरफ से खुला हुआ है। ये सिख गुरु द्वारा स्थापित किए गए एक विश्वास का प्रतीक है जो ये संदेश देता है कि ये मंदिर हर जाति, लिंग और धर्म के लोगों के लिए खुला हुआ है।
चित्रकला में है हिंदू और इस्लामी शैलियों का मिश्रण
सुंदर वास्तुकला के साथ सजे हुए सफेद संगमरमर स्वर्ण मंदिर की दीवारों को और भी सुंदर बना देते हैं। यहां की चित्रकला का नाम पित्रा दुरा है जिसमे फूलों और जानवरों के चित्र के साथ हिंदू और इस्लामी शैलियों का एकदम सही मिश्रण है।
इतने किलो सोने का किया था इस्तमाल
जब स्वर्ण मंदिर बनाया गया था, उस वक्त ठेकेदारों ने सफेद संगमरमर का उपयोग किया था जिसे बाद में महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान असली सोने की प्लेटों से ढक दिया था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, मंदिर के गुंबद को कवर करने के लिए 100 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया था। सोने का कुल वजन लगभग 750 किग्रा से अधिक का माना जाता है।
अमृत सरोवर रखता है बीमारियों से दूर
स्वर्ण मंदिर एक पवित्र पूल से घिरा हुआ है जिसे अमृत सरोवर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस सरोवर के पवित्र जल में लोगों की बीमारियों को ठीक करने की शक्ति है। स्वर्ण मंदिर में जाकर सरोवर में डुबकी लगाना शुभ माना जाता है।
लगता है लंगर
स्वर्ण मंदिर में बड़े पैमाने पर लंगर होता है जिसमें हर दिन 1,00,000 लोगों को मुफ्त में खाना खिलाया जाता है। विशेष अवसरों पर, यह संख्या दोगुना हो जाती है।
ऐसा माना जाता है कि लगभग 500 साल पहले जब सिख गुरु ने लंगर की शुरुआत की थी, उन्होंने जाति की प्रथा को बदलने के लिए इसकी शुरुआत की थी। इससे पहले, लोग जाति के आधार पर ये तय करते थे कि क्या खाना चाहिए और किसके साथ खाना चाहिए।
Created On :   29 May 2018 3:51 PM IST